बुधवार, 30 जून 2021

संवाद मंच (अनुवाद की लघु पत्रिका) जुलाई 2021 अंक


इस लिंक से पढ़ें 

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संवाद मंच 'जुलाई अंक' फ्लिपबुक के रूप में ऑनलाइन पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें 

 https://flipbookpdf.net/web/site/6b016c81edcfaeaebaf1d3e1de9ad1f1f16a7ab4202106.pdf.html

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इस अंक में

 शिक्षा समाचार -1

जीवित बचे रह जाने का रहस्य-डॉ. गुणशेखर-2

बीस रुपये माल वर्मा -4

मातृभाषा पर विश्वास करना सीखें-(मातृ भाषा के बारे में अपने बेटे के शिक्षक को लिखा गया अब्राहम लिंकन का पत्र)-अनुवादक- विजय नागरकर,प्रस्तुति-अशोक बिल्लूरे-5

स्मार्ट सिटी और बेबस गौरैया-निर्मल कुमार शर्मा -6

गंगा- एम.नाज़ ओजै़र-7

पालकी - हरभगवान चावला -7

एक नज़्म जयप्रकाश अग्रवाल -8

मेरी मंजिल विक्रम चौधरी -8

परीक्षा विशेष कैसे करें अनुवादक चयन परीक्षा पेपर 2 की तैयारी बिनय कुमार शुक्ल -2

जो काँटों में राह बनाते हैं रुचि मिश्र -10

फिल्म समीक्षा : भाषा और संस्कृति की नजर से-बानी शुक्ल -11

कविता-दूध - अजय कुमार साव-12

    चाँदनी की कविताएँ-13

Karani Mata Temple-The temple of rats-GauravSharma-14

अनुवाद प्रतियोगिता का परिणाम-16

अनुवाद प्रतियोगिता -17

सूक्तियाँ -जीवन की वास्तविकता-संध्या साव-6

परिस्थिति - काजल गुप्ता -10 

बुधवार, 23 जून 2021

RECRUITMENT OF TRAINEE HINDI OFFICER(TRANSLATOR) IN BEL ON CONTRACT BASIS

Bharat Electronics Limited (BEL) a Navaratna Company and a premier Indian Public Limited Company in Professional Electronics with a portfolio of over 350 different products in the areas of Military Radars, Naval Systems, Electro-Optics, Weapon & Fire Control Communication, Homeland Security, Strategic Communication & Unmanned System, Electronic Warfare, Tank Electronics and Electro Optics.Bharat Electronics Limited (BEL) requires the Trainee Hindi Officer (Translator) on contract basis. 

Please click on this link for details:

https://bel-india.in/CareersGridbind.aspx?MId=29&LId=1&subject=1&link=0&issnno=1&name=Recruitment+-+Advertisements 

 

 

सोमवार, 21 जून 2021

अनुवादक की भर्ती RECRUITMENT OF TRANSLATOR IN HEAVY WATER BOARD

Heavy Water Board Translator Advertisement 

विवरण के लिये कृपया इस लिंक पर क्लिक करें

https://www.hwb.gov.in/recuitments 

SUPERVISOR(OL) VACANCY भारत सरकार के कोलकाता के टकसाल में

 ADVT. FOR THE RECRUITMENT OF SUPERVISOR(OL) AND ENGRAVER-III

Published on
:
Jun 19, 2021
Unit
:
India Government Mint, Kolkata
Last Date
:
Jul 20, 2021
विवरण के लिए इस लिंक पर क्लिक करें 




https://igmkolkata.spmcil.com/interface/JobOpenings.aspx?menue=5

विस्तृत विज्ञापन के लिए इस लिंक पर क्लिक करें 

https://igmkolkata.spmcil.com/UploadDocument/Advt%2001%202021%20for%20Supervisor%20(OL)%20and%20Engraver%20III.07af45c6-67b0-4de5-93b4-1de99dfe6d82.pdf

रविवार, 13 जून 2021

HOW TO APPLY FOR EWS CERTIFICATE IN WEST BENGAL


पश्चिम बंगाल में EWS प्रमाणपत्र के लिए ऑफ़लाइन मध्यम से आवेदन किया जाता है । आवेदन से संबंधित समस्त विवरण तथा फॉर्म डाउनलोड करने के लिए सम्बद्ध विभाग के इस लिंक पर क्लिक करें । इसपर सारी जानकारी तथा फॉर्म की प्रति मिल जाएगी । 

http://wbpar.gov.in/writereaddata/WBCSdirectory/12287.pdf

गुरुवार, 10 जून 2021

जीवित बचे रह जाने का रहस्य- डॉ. गुणशेखर


यह मेरे बच्चों के अथक अनवरत श्रम ,निर्लोभ समर्पण और सतर्कता के साथ-साथ उनकी अति  संवेदनशील आत्मीयता का प्रतिफल है कि आप लोगों के मध्य हूँ।

लंबे और अति मँहगे इलाज़ के बाद पिछले महीने यानी  14 मई को आर टी  पी सी आर निगेटिव आ गया। इस तरह मुझे कोरोना और अस्पताल से एक साथ मुक्ति मिली।घर वापस आकर बस यही लोकोक्ति बार-बार याद आ रही थी,"जान बची तो लाखों पाए।लौट के बुद्धू घर को आए।''

लेकिन यह सुख ज़्यादा समय न टिका। दो-तीन दिन में ही भयावह सिर दर्द ने नई मुसीबत का इशारा कर दिया तो फिर अस्पताल पहुँच  गए। जांचों पर जाँचें।ब्लड तो अस्पताल से ले जाते थे पर एम आर आई,एच आर सी टी की जांचों के लिए वहां तक जाना पड़ता था जो उस समय बहुत तकलीफ़देह लगता था।इन जांचों से कोई खास लाभ नहीं हुआ।पहले वाले जिस ई एन टी सर्जन ने फंगस का शक किया था वह शक भी झूठा सिद्ध हो रहा था।बाद में मेरे छोटे बेटे ने बड़े बेटे को  शहर के एक वरिष्ठ सर्जन ( ई एन टी )से समय लेने को कहा। ये हैं डॉ  प्रशांत देशाई उम्र 75 से 80 के मध्य।आपरेशनों की संख्या कई हज़ार में।जो काम बारह-बारह हज़ार लेने वाले अत्याधुनिक तकनीक वाले कीमती यंत्र न कर पाए। इन्होंने नाज़ल इंडोस्कोपी से वह फन्गस अर्ली स्टेज में ही खोज निकाला।इस तरह जब हमें कोरोना से मुक्ति मिली तो फंगस के फेर में आ गए थे।

अंतत: 21 मई को उन्होंने तीन और सर्जनों के साथ  सूरत के सबसे मशहूर 'सूरत ई एन टी होस्पिटल'के ओ टी में मेरे ऑप्रेशन को अंज़ाम दिया।प्रात: 9से 12बजे तक चले इस ऑप्रेशन में फंगस को ऐसे छील कर निकाल दिया गया था जैसे कि हंसिए से गन्ने पर लिपटा फंगस छील कर उसे चूसने लायक बना दिया जाता है।

कोरोना का इलाज तीन चार सौ से तीस-चालीस लाख तक में होता है।किसी किसी का पचास -साठ तक भी  पहुंच जाता है।मेरे बेटों ने सबकुछ अपनी समझ बूझ और सामर्थ्य के बल पर किया।अगर ये समर्थ और उदार न होते और मैं अपने पैसों के भरोसे होता तो भी वही स्थिति होती जो बहुतों की हुई।    


           मेरे बेटे हज़ारों किलोमीटर दवाओं के लिए भूखे-प्यासे दौड़े  होंगे।यह कहना बेवकूफी होगी कि सब पैरों पर चले लेकिन इतना ज़रूर चल डाले होंगे कि दूसरों के बच्चे जीवन भर में बाप के लिए उतना नहीं चले होंगे।जिनके बच्चे ऐसे हैं वे मुझे क्षमा करेंगे।कभी भी पूरी दुनिया एक साथ अच्छी या बुरी नहीं रही।हर दशरथ राम नहीं मिलते लेकिन मिलते तो हैं।अच्छे के साथ बुरे भी जन भी हमारे समाज में रहे हैं जैसे राम के साथ रावण और कृष्ण के साथ कंस।यह होना किसी काल में कोई आश्चर्य नहीं का विषय नहीं रहा है। 25 दिन तक न बेटे सोए और न मैं।हाँ जब भी वे मेरे कमरे में आते मैं उनसे कोई न मोई फ़रमाइश कर देता वे उलटे पैर लेने दौड़ पड़ते।रात में बारह या एक बजे तक प्राय: अस्पताल में रहते फिर चार से पाँच के बीच सुबह दूध, दलिया और चाय आदि लाते।अगर उन्हें देर तक रुके देखता तो कभी कभी उन्हें फालतू चीज़ें भी लेने भेज देता ताकि वे मेरे संपर्क में कम से कम रहें।मेरे बेटों ने चालीस लाख से ऊपर खर्च कर दिए होंगे पर न कभी थके न हारे। कभी एक भी पैसा न अपनी माँ से माँगा और न मुझसे ही लिया।खैर! मैं तो किसी भी प्रकार के लेन-देन की स्थिति में ही न था।

  कल जब इस लायक हुआ तो  ज़िद करके बैंक गया।छोटे वाले से कहा कम से कम दस लाख तुम ले लो और पाँच बड़े को दे दो।इसपर उसका जवाब आँखें गीली कर गया कि,"जब आपने मेरा इलाज़ कराया था तो क्या कभी हमसे उसका खर्चा लिया था?" उसे बहुत कह-सुन कर बैंक चलने को  राज़ी कर लिया।वहां पहुँचे तो पता चला कि  15 दिन के मध्य अनेकश: पत्राचार के बाद सेविंग  अकाउंट में  बीस लाख स्थानांतरित भी हो गए  हैं। उन्हें   निकालने  को प्रबंधक से कहा तो  पता चला कि बैंक में पैसे ही नहीं हैं।संयोग से प्रबंधक जी मेरे मित्र थे नहीं तो कह देते कि फलाँ रोड पर इसकी दूसरी शाखा है उसमें ( यू बी आई में) हमेशा पैसे रहते हैं ।आप वहाँ चले जाओ। मेरे लिहाज़ में उन्होंने 3-4 शाखाओं में पता किया।वहाँ भी पैसे नहीं थे।मेरे लिए इन भलेऔर मित्र प्रबंधक ने अपने एक और  मित्र प्रबंधक सेअपनेपन का  दबाव डालकर कहा कि कृपया मदद करो तो उसने अपना आधा कैश इनको देने को कह दिया।इन्होंने अपने कैशियर को भेज कर 10 लाख मंगवा भी लिए।तीन घंटे बाद  आए पैसों से मुझे खुशी हुई।पर यह खुशी ज़्यादा देर न टिकी अब पता चला कि किसी दूसरी शाखा से दो लाख से ज़्यादा निकाल ही नहीं  सकते।शायद ये सब नियम बैंकों में जमा किए  जाने वाले पैसों में तेज़ी से गिरावट के कारण तरलता (लिक्विडिटी )में कमी के कारण बनाए गए हैं या होंगे।लेकिन उसका क्या होगा जिसका मरीज़ एडवांस के अभाव में भर्ती नहीं किया जा रहा है याऑप्रेशन थियेटर में है और मंहगी दवाओं की ज़रूरत है।मैं सोच में पड़ गया कि आखिर इन बैंकों का पैसा गया कहाँ?

            एक बार मैं दावे से फिर कहता हूँ कि अपने बच्चों के श्रम और समर्पण के कारण इस धरा धाम पर हूँ। केवल किसी डॉक्टर,  भगवान या भगवती के कारण नहीं क्योंकि मेरा खुद का पैसा भी बचत खाते में तब आया जब मेरा 80प्रतिशत से अधिक  इलाज संपन्न हो चुका था। पैसा न हो तो कोई डॉक्टर किसी गरीब की गरीबी पर रीझ कर आपरेशन न करेगा।

      जब सातवीं कक्षा  में था तो अपनी मां का इलाज़ कराया है।उस समय के के डॉक्टर को देखते हुए आज के बहुतेरे डॉक्टर मुझे राक्षस लगते हैं।

        एक बार मेरी मां गंभीर रूप से बीमार पड़ी तो मेरे पिता जी का कहना था कि,"मेरी मूँछें खुजला रही हैं।अब ये बचेंगी नहीं।'इसपर ताऊ ने तमतमाकर कहा था ज़्यादा तमाशा न बनाव।लहास केरि खराबी करै क होय तौ लखनऊ लइ जाव।"मुझे याद है कि चारपाई पर लिटा कर चार कोस दूर बेलहरा तक जो लोग मेरी मां को लाए थे उनमें एक भी सवर्ण न था यहाँ तक कि पिछड़ी जाति का भी नहीं।मेरी माँ से मुफ्त में लीटरों दूध ले ले कर साँड़ हुए मेरे पट्टीदार भी कां न आए।हम अपने सगे और चचेरे भाई-बहिनों में मैं सबसे बड़ा था और उस साँय मेरी उमर 13-14 साल रही होगी। चारपाई पर लाई गई मेरी माँ की ब्लीडिंग से पीछे जो रहता घंटे दो घंटे में लाल हो जाता था।मां को 'क्वीनमेरी' में भर्ती कराया।मेरे किशोर और अबोध होने का लाभ यह मिला कि बेलहरा से लखनऊ तक के पैसे कण्डकटर  ने भरे।उसी ने कैशरबाग से चौक जाने वाले टैंपो के पैसे भी दिए थे।टैंपो वाले ने इमर्जेंसी वार्ड में भर्ती भी करा दिया था।

        दूसरे दिन ही मेरी माँ को होश आ गया था।तीसरे दिन से बोलने और खाने-पीने लगी थी।न एक पैसे की दवा लेनी थी न फल।सब कुछ अस्पताल से ही मिल जाता था।यहाँ  तक कि एक स्टाफ नर्स की कृपा से मुझे भी खाना मिल जाता था।परायों की हमदर्दी देख कर यह सोचे बिना कि भादों की बरसात में मेरे पाँच  छोटे भाई बहिनों को छोड़कर कैसे आएँगे,पिता जी पर बहुत क्रोध आता था।उसी गुस्से में शायद एक पोस्टकार्ड पिता जी को लिखा था कि अगर मूँछों की खुजली शांत हो गई हो तो क्वीन मेरी के फलाँ वार्ड और बेड नंबर पर आकर मिल लो।खैर!पिता जी आए।खाने के शौकीन पिता जी घी सहित तमाम ताम-झाम भी साथ लाए।अच्छा-अच्छा खाना खिला कर उन्होंने दो तीन दिन  में ही मुझे खुश कर लिया था।

     शायद डेढ़  महीने में मेरी माँ जवान और ताकतवर के साथ-साथ सुंदर भी हो गई थी।ऐसे थे मेरे किशोरावस्था के अस्पताल!

लेकिन आज की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसी है जिसने हमारे जीवन को राम भरोसे छोड़ दिया है।देश के कर्णधार यानी नीरो  के लिए रोम जले तो जले नीरो को तो बाँसुरी बजाने में आनंद आ रहा है और उस बाँसुरी की धुन पर लाखों-करोड़ों  चूहों का झुंड स्वेच्छा से डूबने जा रहा है।कुछ तो उसी भीड़ के धक्के से उसी दिशा में जा रहे हैं जिस दिशा में जाने के बाद कभी कोई लौट कर नहीं आया।जो रों को लौटने की कोशिश करते हैं कुचले जाते हैं।इसलिए बाँसुरी सुनते हुए मरण बेहतर मान रहे हैं।

      मैं अपनी देह पर कोरोना का तूफान झेलकर दोनों तटबंध तुड़ा बैठा  हूँ फिर पैसों और दवा के बल पर अभी ठीक हूँ।रिकवरी भी फास्ट हो रही है।पर यह भी सोचता  हूँ कि सबके बच्चे मेरे बच्चों जैसे नहीं होते।जो होते भी हैं उनके पास संसाधन नहीं होते।उनके पास पैसे भी नहीं होते।क्या उनके लिए सरकारों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती।जैसे मुझे हॉस्पिटल मिल गया।ऑक्सिजन आ गई क्या आम आदमी को ये सुविधाएं सरकारें मुहैया करा रही हैं?नहीं करा रही हैं तो आखिर यह ज़िम्मेदारी किसकी है?क्या नागरिक ऑक्सिजन प्लांट लगाएँगे?क्या अस्पताल भी नागरिक ही खोलेंगे? यदि ऐसा है तो क्या सरकारें तेल की कटोरी और बोरी लेकर पार्कों में बैठेंगी।यकीन मानिए यह भी काम ये ठीक से न कर पाएँगी।किसी कार्पोरेट को ठेका दे देंगी।

    मुझे सब कुछ समय पर मिल गया।दवा भी, दुआ भी और प्यार भी।अस्पताल,डॉक्टर,फार्मेसिस्ट  सबने नकद माँगा और उनको मिला।उसमें एक मिनट भी जाया न हुआ।अपने महान सेवक और मसीहा के डिजिटल इंडिया की छाती पर सवार भगवान माने जाने वाले ये डॉक्टर अपनी प्राण प्रिया लक्ष्मी जी की जुल्फों में उंगलियाँ फेर रहे थे।इसके बावज़ूद खास बात यह कि एक दिन भी मेरी किसी दवा का नागा नहीं हुआ।जांचों में घंटे क्या मिनटों की भी देरी न हुई।

      यह सब मेरे जीवित बच जाने का रहस्य है!

 सोचता हूँ कि  उनका क्या जो अस्पताल में ओक्सिजन की प्रतीक्षा में हैं? क्या उनका भी कुछ होगा जो गैलरी,एंबुलेंस,कारों,आटो या बेटे की गोद में दम तोड़ रहे हैं!

भगवान उन सबको सद्बुद्धि  दे जिनकी असमय मति मारी जाने से लाखों मारे जा रहे हैं और हज़ारों उसकी दहशत में मर रहे हैं।

@गुणशेखर

गुरुवार, 3 जून 2021

IGNOU BOOKS HOW TO GET FREE OF COST

 IGNOU के विभिन्न पाठ्यक्रमों की पुस्तकों के लिये IGNOU के इस लिंक पर जाएँ और मुफ्त में किताबों के साथ ही पिछले प्रश्नपत्र,असाइनमेंट आदि डाउनलोड कर सकते हैं:-

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भारतीय रिजर्व बैंक ने NON CSG POSTS की भर्ती का परिणाम घोषित किया

 Link for result of NON CSG POSTS PY 2020

https://opportunities.rbi.org.in/Scripts/bs_viewcontent.aspx?Id=3994