मंगलवार, 24 मार्च 2015

गली-कूचा : राइट टू कॉपी इन इक्जाम्स

गली-कूचा : राइट टू कॉपी इन इक्जाम्स:        बैठा टेलीविज़न के चैनल बदल रहा था कि फिर एक समाचार आया । ऐसा समाचार कई   दिनों से मीडिया मे चल रहा है जिसमे परीक्षा मे नकल करने के म...

राइट टू कॉपी इन इक्जाम्स

      बैठा टेलीविज़न के चैनल बदल रहा था कि फिर एक समाचार आया । ऐसा समाचार कई  दिनों से मीडिया मे चल रहा है जिसमे परीक्षा मे नकल करने के मामले को दिखाया जा रहा है । इस खेल में कभी छात्र पीट रहे है तो कभी अभिभावक पुलिस के डंडे का शिकार हो रहे है । कही कोई नेता इसके पक्ष में बोल रहा है तो शहर के किसी कोने से इसकी निंदा भी की जा रही है । कुछ नेताओं का कहना है कि मीडिया हमारे राज्य की छवि धूमिल करने के लिए ऐसा दिखा रही है । जीतने मुह उतनी बाते । भाई इंसान का मुह ही तो है जिससे निकालने वाली बात पर किसी सरकार ने अबतक किसी प्रकार के टैक्स का प्रावधान नही किया है । लिहाजा जिसे जो मर्जी वो कहता रहे । कोई उन छात्रों के दिल में झांक कर देखे जो ऐसा अनैतिक कदम उठाने के लिए बाध्य होते हैं । उनके अन्तर्मन की दशा एवं पीड़ा से तो जैसे किसी को कोई सरोकार ही नही रहा । सब अपनी अपनी भैंस हांक रहे हैं । मैंने अपने मुहल्ले के बच्चा पार्टी की एक आपातकालीन बैठक बुलाय एवं नकल के विरोध में उन्हे सचेत करने का प्रयास किया । छात्रों के अन्तर्मन की बात जानने के लिए हमने यहाँ एक प्रयास किया जिसमें काफी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए ।
      एक समय था जब सरकारी नौकरी के लिए शिक्षा कोई बाध्यता नही थी , इंसान दस दर्जे ना भी पढ़ा हो तो कम से कम उसे सरकारी नौकरी मिलने की आशा रहती थी चाहे भले ही वो ग्रुप डी के पद ही क्यों ना हो । पर जब से सरकार ने इन पदों के लिए दसवी पास होना वाध्यता कर दिया, उसी समय से समस्या और गहरी होती चली गई । अब देखा जाये तो कई ऐसी सरकारी नौकरियाँ हैं जिनमें भर्ती होने के लिए न्यूनतम शिक्षा के एक मानदंड तय कर दिये गए हैं जैसे इंटर अथवा स्नातक स्तर पर भी कम से कम 60 अथवा 70 प्रतिशत अंकों की वाध्यता । अब एक औसत दर्जे के बालक जो किसी कारणवश परीक्षा में 60 अथवा 70 प्रतिशत अंक ना प्राप्त कर सके वो तो ऐसी नौकरी के लिए आवेदन कर ही नही सकते है । अब उसे सिर्फ इस बात के लिए अपनी काबिलियत दिखाने के मौके से वंचित कर दिया जाता है कि प्रथमद्रष्ट्या उसके पास समुचित अंक नही है । अब ऐसी स्थिति पैदा ना हो इसके लिए अभिभावक एवं छात्र मिलकर इस नकल अभियान में शामिल हो जाते है । अब ये तो गारंटी नही है कि जिन्होने स्कूल अथवा कालेज में अधिक अंक प्राप्त किया हो उनकी बौद्धिक क्षमता भी उतनी ही प्रगाढ़ हो । और फिर अधिकांशतः नौकरी के क्षेत्र में स्कूल-कालेज में की गई पढ़ाई की खास अहमियत नही होती । हर काम के अपने पैमाने होते हैं एवं उसी पैमाने के अनुसार ही काम करना पड़ता है ।  
      दूसरी तरफ हम देखें तो लगता है जैसे हमारे देश को पढे लिखे लोगों की आवश्यकता नही है । कहने के लिए कोई कुछ भी कहता रहे परंतु अधिकतर राजनेता यही सोचते हैं । अन्यथा आजादी के इतने सालों के बाद भी अधिकांश इलाकों में शिक्षा के स्तर में कोई बदलाव नही है । कही स्कूलों में शिक्षक नही हैं तो कही आवश्यक साधनों का अभाव है । कई तो स्कूल ऐसे देखे गए जहा एक कक्षा में पचास से भी अधिक छात्र । शिक्षको के वेतन भी ऐसे ही हैं , हजार दो हजार रुपए के मासिक वेतन पर स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक हर गली मुहल्ले में मिल जाएगा । अब समुचित पारश्रमिक जिस शिक्षक को नही मिल रहा हो वह अपने पेशे के प्रति ईमानदारी करेगा इसकी आशा कभी की जा सकती है भला । अपने जीवन निर्वाह के लिए शिक्षण के अलावा वो अपनी ऊर्जा कही और खर्च करेगा जिससे उसके एवं उसके परिवार का सामान्य खर्च चल सके । ऐसा नही कि स्कूल प्रबंधन उस शिक्षक को वेतन देने लायक आय नही कर पाता अथवा सरकार द्वारा समुचित पारश्रमिक एवं शिक्षक नही उपलब्ध करवाया जा सकता । पर ये हैरानी की बात है कि ऐसा क्यों नही किया जाता ।  
      अगली बात आती है स्कूल कालेजो में दी जा रही शिक्षा रोजगार परक ना होना । अब प्राप्त शिक्षा के बाद भी सही रोजगार में उस शिक्षा का इस्तेमाल ना हो सके तो ऐसी शिक्षा का क्या लाभ । अब इतनी जटिलता के बाद भी सामाजिक स्तर एवं एक मृगतृष्णा की चाह में एक अभिभावक अपने बच्चों पर शिक्षा अर्जन के लिए दबाव तो डालेगा ही । उच्च अंक की आकांक्षा में हर नैतिक एवं अनैतिक कार्य करने के लिए दोनों बाध्य हो जाते है । जमाना भी इनकी व्यथा एवं पीड़ा से वाकिफ है इसलिए नकल की प्रथा में सहयोग करने वालों की संख्या इसके विरोध करने वालों की संख्या से अधिक है ।
      और भी कई गूढ बातें खुलकर सामने आई । मुझे याद है कि एक बार डॉ कलाम साहब ने सुझाव दिया था कि शिक्षा एवं परीक्षा का माध्यम ऐसा बने जहां छात्रों को परीक्षा हाल में किताबें ले जाने की खुली छूट हो । जहां तर्कसंगत रूप में ऐसी व्यवस्था हो वहाँ नकल करने वाले को पढ़ना तो पड़ेगा ही, बिना पढे उसे पता ही नही चल पाएगा कि किस पृष्ठ में क्या है । अब ऐसी स्थिति में नकल करेगा भी तो कैसे ।

      बच्चो ने एक सुर में कहना शुरू किया अंकल सरकार ने राइट तो एडुकेशन तो बना दिया पर हमें लगता है राइट टू कॉपी इन एक्जाम्स का अधिकार हमें दिया जाना चाहिए ।  प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में कई नेता चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में नकल के समर्थक हैं । ऐसा नही है कि नकल की प्रथा एक राज्य तक ही सीमित हो या फिर किसी एक प्रतियोगी परीक्षा तक सीमित हो । अब तो आई एस तक की परीक्षा के पेपर लीक होने की बाते सुनने में आने लगी है । यह भी तो नकल करने का एक प्रारूप है । अब हर जगह इसका चलन है ही तो फिर इसे वैध रूप में लागू कर छात्रों के लिए संवैधानिक अधिकार क्यों न कर दिया जाए । 

शनिवार, 14 मार्च 2015

महिलाए भी अग्रणी हैं बैंक खाता हैकिंग में

 अपराध जो अबतक एक अनियोजित सेक्टर था अब लगता है सुनियोजित सेक्टर होता जा रहा है । कुछ लोगो का मानना है कि अपराध के क्षेत्र में सिर्फ पुरुषो का ही एकाधिकार है पर हाल की कुछ घटनाओं ने इस धारणा को बदलने का प्रयास किया है ।
इसमें पहली घटना है डेबिट / क्रेडिट कार्ड की जानकारी जुटाने की । मेरे एक मित्र है उनके फोन पर एक महिला ने काल किया और बताया कि मैं एच डी एफ सी बैंक के कार्ड डिविसन से बोल रही हूँ , आप हमारे कंपनी का कार्ड इस्तेमाल करते है इसके लिए आपको धन्यवाद। हमारे बैंक की तरफ से आपके लिए एक विशेष गिफ्ट का ऑफर है । इसमें आपको तीन हजार रुपये का गिफ्ट दिया जाना है । गिफ्ट देने से पहले मैं कनफर्म करना चाहती हूँ कि में सही व्यक्ति से ही बात कर रही हूँ इसका वेरिफिकेशन करना जरूरी होगा । हमारे बात रिकार्ड हो रही है । मित्र ने वेरिफिकेशन करवाने के लिए हामी भर दिया । उनसे सबसे पहला सवाल किया गया कि आप अपने कार्ड के पीछे देख कर बताइये एक लोग होगा वो लोगो मास्टर कार्ड का है या क्या बना हुआ है । मित्र ने निशान के बारे में बता दिया । अगले कुछ प्रश्नों में उन्होने अपने कार्ड के बारे में समस्त जानकारी दे दिया । सौभाग्यवश मैं उनके पास ही खड़ा था । मैंने उनसे पूछ लिया कि क्या बात कर रहे थे । उन्होने सारा वाकया बताया । मन में कुछ शंका हुई । हमने तुरंत बैंक के काल सेंटर में बात किया और इस काल के बारे में जानकारी मांगा । हमें बैंक से बताया गया कि उनके तरफ से ऐसी कोई काल नही की गई है । और यदि कोई ऑफर होता है तो बैंक उसे कस्टमर के मेल पर जानकारी दे देती है । ग्राहक से बात करके उसके कार्ड का विवरण नही पूछती है । मित्र के कार्ड को तुरंत ब्लॉक करवाया गया । वो तो बच गए किन्तु बहुत सारे लोग इस ठगी के शिकार हो जाते हैं । 
      एक दूसरी घटना है जिसमें हमारे कार्यालय के एक कार्मिक को फोन आया कि उनका डेबिट कार्ड ब्लॉक हो गया है । उसको फिर से चालू करवाने के लिए कुछ वेरिफिकेशन करवाना होगा । इसके बाद ही उनका कार्ड चालू हो पाएगा । उन्होने वेरिफिकेशन के लिए अपने कार्ड के बारे में सारी जानकारी दे डाला । सौभाग्य वश उन्हे पास में खड़े किसी मित्र ने सजग किया और वो तुरंत बैंक जाकर अपने कार्ड को ब्लॉक करवाए ।
      एक और घटना में एक मित्र के पास फोन आया कि में स्टेट बैंक कार्ड मैनेजर बोल रहा हूँ । बैंक ने अपने खाताधारको के ए टी एम कार्ड में बदलाव करना शुरू किया है । अब नया कार्ड ग्राहक के फोटो के साथ जारी होगा जिससे कार्ड चोरी होने या खो जाने पर कोई और इस कार्ड का प्रयोग नही कर सकता है । आपका फोटो लगाने के लिए हमे कुछ जानकारी चाहिए । मित्र थोड़ा समझदार थे , उन्होने जांकारे देने से मना किया तो उन्हे बताया गया कि आज सुबह से ही बैंक ने अपने सभी खाताधारको के कार्ड ब्लॉक कर दिया है । हमे ग्राहको से जानकारी लेकर उनके विवरण को अपडेट करना है । डिटेल देने के बाद ही आपका कार्ड चालू हो पाएगा । यदि डिटेल मैच नाही किया तो आपकी खाते में जमा रकम जप्त हो सकती है । मित्र अपनी जमा रकम खोने के भय से डार्ड अपने खाते का विवरण देने वाले ही थे कि सौभाग्यवश उनके फोन की बैटरी खत्म हो गई और फोन ऑफ हो गया । वो तो बच गए पर ऐसे कई लोग हैं जो इस प्रकार के फोन काल के झांसे में आ जाते हैं और अपनी जमा पूंजी गवां बैठते है । गाहे बगाहे मेरे पास भी ऐसे फोन आते रहते हैं ।
      बैंक खाते से इतर एक दूसरे प्रकार की ठगी भी चल रही है जिसमें फोन करने वाला खुद को इन्स्युरेंश अथॉरिटी  ऑफ इंडिया का प्रतिनिधि बताते हैं और आपसे पूछते हैं कि आपके पास जो बीमा की पॉलिसी है उसके बारे में जानकारी देना है । बीमा कंपनी या अजेंट की तरफ से कोई तकलीफ तो नही हो रही है । आपकी किसी असुविधा के निवारण के लिए भारत ह सरकार ने हमारी संस्था बनाई है । और फिर इसके बाद आपसे कई सारी जानकारी ली जाती है। यहाँ कुछ चुराया  तो नही जाता लेकिन आपको गुमराह करके आपसे पैसे  वसूल किए जाते हैं । अभी कल ही मेरे मोबाइल पर एक फोन आया । फोन +919278614840 नंबर से आया था । फोन करने वाली महिला ने अपने आपको इन्स्युरेंश अथॉरिटी  ऑफ इंडिया प्रतिनिधि बताते हुए मुझसे पूछा कि आपके पास LIC की पॉलिसी है उसके बारे में कुछ पूछताछ करनी है । उसकी सेवाओं के बारे में जानकारी अपडेट करना है । मैंने बताया कि मेरे पास LIC के कोई पॉलिसी नही है । तो कहा गया कि किसी और बीमा कंपनी की पॉलिसी तो होगी । मैंने बताया कि मैडम मेरे पास किसी कंपनी का बीमा नही है । और भी कई बाते हुई । मैंने पूछा मैडम क्या आप अपने कार्यालय का पता बता सकती है । किसी मित्र को तकलीफ हुई तो आपके पास भेज सकूँगा । तो मुझे दिल्ली के कनाट प्लेस स्थित भारतीय जीवन बीमा के कार्यालय का पूरा पता बता दिया गया । मैंने कहा मैडम वो तो LIC का आफिस है , आप अपने आफिस का पीटीए बताइये । तो बताया गया कि हम LIC के आफिस में ही बैठते हैं । मैंने अपने LIC के मित्रों से पता किया तो बताया गया कि ऐसी कोई संस्था है ही नही ।

      इन घटनाओं में समस्त काल महिलाओं द्वारा किया गया था । और बड़े ही सफाई से जानकारी ली जाती है । लोगो को भ्रम होगा कि ठगी का क्षेत्र असंगठित क्षेत्र होता है तथा इस क्षेत्र में महिलाएं नही होती हैं । पर मुझे यकीन होने लगा कि अब ठगी भी संगठित क्षेत्र का व्यवसाय हो गया है और महिलाए इस क्षेत्र में भी बराबर की भागीदारी निभा रही हैं ।

सोमवार, 9 मार्च 2015

चली भैंस विमानबंदर


      अखबारों में लहराता सा समाचार पढ़ा | पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि जिस रनवे पर विमान के पास बिना टिकट और सुरक्षा जांच के कोई यात्री अथवा विमान कर्मी नहीं पहुँच सकता उसपर बिना टिकट और सुरक्षा स्टैम्प के कोई भैंस पहुँच सकती है | पर खबरों में आया है तो यकीन तो करना ही पडेगा | मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था "हवाई जहाज से भैंस टकराई |” आज तक तो हमने राजनैतिक दलों को टकराते देखा, धरती से उल्का पिंडों को टकराते देखा, कभी लड़ाकू विमानों से परिंदों को टकराते देखा , पर यह घटना तो अपने आप में एक ख़ास बात थी |
      लगता है जैसे भैंसों ने अखबारों की सुर्ख़ियों में बने रहने का प्रण कर रखा हो , तभी तो कभी किसी स्थान पर खोई हुई भैंस को ढूढ़ने के लिए पुलिस अधिकारीयों सहित महकमे के सारे आला अफसर लग गए थे | खोई हुई सरकारी संपत्ति चाहे कभी ना मिल पाई हो पर भैंस तो भैंस ही थी , मिल ही गई | कभी तो भैंस को महारानी एलिजाबेथ से अधिक महिमामंडित किया गया और देसी मीडिया में इस बात की धूम रही | माना जाता है कि भैंस अमूमन एक शांतिप्रिय जानवर है, अकिंचन ही कभी इस प्रजाति को आक्रामक देखा होगा | पर भैंस का इस कदर आक्रामक होना कि विमान से ही टकरा जाए या एक अद्वितीय घटना थी | अब इस घटना का मीडिया में चर्चा होना लाजिमी था | विमान से भैंस क्या टकराई , सारा शहर जैसे इस घटना से जीवंत हो उठा | शहर में एक पूरा अमला भैंस ढूंढो, भैंस पकड़ो अभियान में शामिल हो गया | लग रहा था जैसे आपातकाल आ गया हो | अबतक मीडिया का यह ट्रेंड रहा है कि समाचारों में कोई अनहोनी घटना जैसे कि बम विस्फोट , आतंकवादी आक्रमण की खबर आते ही यह वाक्य अवश्य पढ़ा जाता है कि ,”अबतक इस घटना की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है |” जैसे कह रहे हों कि जब कोई संगठन जिम्मेदारी ले लेगा तब सुरक्षा एजेंसियां जांच कार्य संपन्न करेंगी | राजनैतिक दलों में यह ट्रेंड रहा है कि हर दल इस घटना के पीछे विरोधी दल का हाथ बताते हुए अपने सर से पल्ला झाड़ने की तैयारी कर लेता है | इस घटना पर मेरी पैनी नजर इस बात की तलाश में लगी हुई थी कि शायद कोई संगठन इसकी जिम्मेदारी ले ले , या फिर कोई राजनेता इस बात का ऐलान करे कि यह विरोधी दल का काम है , पर मेरी तलाश अधूरी ही रह गयी | हाँ एक बात अवश्य हुई , किसी राजनैतिक दल से सम्बंधित कुछ लोगों ने एक श्रद्धांजली मार्च का आयोजन किया एवं उस मरी हुई भैंस की आत्मा की शांति के लिए विरोध प्रदर्शन भी किया | धन्य हो मेरे वीरों, इस समय इसकी बहुत आवश्यकता थी जिसे आप सभी ने पूरा भी किया |
      हमारे देश में इस बात का प्रचलन सदा से ही रहा है कि जैसे ही कोई घटना हो जाए , तमाम तरह की चीजें शुरू हो जाती हैं मसलन कई तरह की सुरक्षा जांच , मॉक ड्रिल जैसे अन्य कार्य | यहां भी वही सब चल रहा है , सांप गुजरने की बाद लाठी पीटने की कवायद | इसके अलावा जो अहम बात होती है , वह है घटनास्थल के परिधि में कार्यरत अधिकारीयों को दोषारोपित कर या तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है या फिर स्थानांतरण | बस हो गयी खाना पूर्ति , फिर से वही धाक के तीन पात वाली स्थिति पे लौट चलो | यहाँ भी कुछ ऐसा हुआ | किसी ने यह नहीं सोचा कि उस बेचारे ने भरसक प्रयास तो किया ही होगा कमियों को दूर करने का | हो सकता है इसके लिए आवश्यक बजट , कार्मिकों को मुहैया ही नहीं करवाया गया हो , पर नहीं हलाल तो हर हाल में बकरी को ही होना है, सो हो गयी |
      हाले नगर, जहाँ या अख़बार कीच भी रहे , इन विशिष्ट भैंसों ने अपनी कुर्बानियों से यह तो दिखा ही दिया कि अब वक्त आ गया है कि भैंस पर चल रहे मुहावरे और लोकोक्तियों को बदला जाए और गयी भैंस पानी में , भैंस जैसी मोटी अक्ल इत्यादि कहने से इंसान तौबा करे अन्यथा अभी तो सिर्फ विमान को ही ठोका है क्या पता रुसवाइयों का यह सिलसिला चलता रहे तो भविष्य में और किस किस को ठोंक दें


शनिवार, 7 मार्च 2015

अब तेरा क्या होगा .......(ESIC के प्राविधानों के संबंध में)


      वित्त मंत्री जी का बजट भाषण सुन रहा था । भाषण के दौरान उन्होने एक बात कहा, जिसके सुनने के बाद काफी लोगों के होश फाख्ता हो गए । उन्होने 63 वर्ष पुराने भारत के एक मात्र सामाजिक सुधार योजना “कर्मचारी राज्य बीमा योजना” में बदलाव के बारे में कहा । उन्होने कहा कि कर्मचारी राज्य बीमा योजना में एवं भविष्य निधि में आंशदान को स्वेच्छिक किया जाएगा । कर्मचारी राज्य बीमा योजना के स्थान पर व्यक्ति बीमा निगमन प्राधिकरण (IRDA) द्वारा अनुमोदित किसी भी स्वास्थ्य बीमा को स्वीकार कर सकता है । भविष्यनिधि के स्थान पर  राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) का चुनाव कर सकता है ।
      सामाजिक सुरक्षा योजना के अंतर्गत आने वाली ये दो संस्थाएं (ESIC और EPFO) अपने आप में भारत सरकार की अद्वितीय योजनाएँ हैं जिनमे असंगठित क्षेत्रों के कामगारों के हित में कई प्रकार की योजनाएँ एवं लाभ वर्णित हैं । EPFO में कार्मिक के वेतन का कुछ हिस्सा तथा उसके नियोक्ता के तरफ से कुछ हिस्सा जोड़कर भविष्य निधि संगठन के रूप में जमा किया जाता है । इस जमा रकम पर हर साल एक निश्चित प्रतिशत के अनुसार ब्याज दिया जाता है । एक औसत आय वाला व्यक्ति समय समय पर अन्य संस्था से उधार ना लेकर इस निधि से कर्ज लेकर अपनी सामाजिक एवं आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है , तथा एक निश्चित किस्तों में इस रकम को वापस कर देता है । इससे एक तरफ उसका काम तो हो ही जाता है , साथ ही उसकी रकम पुनः उसके खाते में जमा हो जाती है । समय के साथ इस रकम को आंशिक अथवा पूर्ण रूप से भी निकालने का प्राविधान है जिसका उपयोग अधिकांश कार्मिक करते हैं । इसके इतर राष्ट्रीय पेंशन योजना भी अपने आप में एक बेहतर योजना है जिसमें जमा की गई रकम एक निश्चित उम्र पार होने के बाद पेंशन के रूप में दी जाती है । इसके अपने नियम एवं प्राविधान है । अपने अपने स्थान पर दोनों अतुलनीय है पर यदि भविष्य निधि से इसकी तुलना की जाए तो भविष्यनिधि में मिलने वाली वो सुविधाएं जिनके बारे में ऊपर की पंक्तियों में मैंने उल्लेख किया है वो नहीं हैं । इस भारत में ऐसा कोई व्यक्ति नही है जिसे कभी किसी खास आवश्यकता के लिए अचानक एक बड़ी रकम की आवश्यकता नहीं पड़ती । इन आवश्यकताओं में किसी लंबी बीमारी के इलाज के लिए पैसे की आवश्यकता पद सकती है , मकान बनाने के लिए या बच्चों के शिक्षा के खर्चे या फिर शादी ब्याह के खर्चे लगभग हर घर में आते हैं । एक औसत आय वाले कामगार या कार्मिक की बात करें तो इस प्रकार के खर्चे के लिए रकम का जुगाड़ कर्ज के अलावा और कोई राह नही होता है। इसके लिए सबसे सुलभ मार्ग भविष्यनिधि से मिल पता है । यदि इस निधि में उसके पैसे जमा नही होते तो समय पर उसे पैसे के लिए या तो अपने जमीन मकान को बेचना पड़ेगा या फिर कर्ज देने वाले लोगों से मंहगे ब्याज दर पर उधार लेना होगा । इस प्रकार का कर्ज उसके लिए गली की फांसी साबित हो सकता है । NPS से पैसे निकालने या उधार लेने का प्राविधान अबतक नही बना है । ऐसे में उसकी सहायता कौन करे यह एक बड़ा सवाल है ।
      अब ESIC की बात करते हैं । नियामानुसार इस योजना में अबतक जिन कार्मिकों का मासिक वेतन पंद्रह हजार रुपया से कम है उन्हे शामिल किया जाता है । कर्मचारी राज्य बीमा योजना में कामगार के वेतन का 1.75% तथा नियोक्ता द्वारा इस वेतन का 4.75% जोड़कर कर्मचारी राज्य बीमा योजना में जमा किया जाता है । इस 6.50% की रकम के बदले निगम द्वारा कार्मिक एवं उसके आश्रितों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा, कार्मिक की बीमारी की स्थिति में काम से उसकी अनुपस्थिती के एवज में बीमारी हितलाभ (नकद), किसी दुर्घटना में कार्मिक के विकलांग होने की स्थिति में उसे आजीवन पेंशन , कार्मिक की काम के दौरान मृत्यु होने की स्थिति में उसके दाह संस्कार के खर्चे के लिए उसके आश्रितों को एक निश्चित रकम  नियमानुसार पेंशन के रूप में दिये जाने का प्राविधान है । इन समस्त सुविधाओं के लिए भारत सरकार की तरफ से निगम को किसी प्रकार का योगदान नही दिया जाता है ।  निगम के कार्मिकों से लेकर कामगारों को दी जाने वाले सुविधाओं के समस्त खर्चे निगम द्वारा स्वयं वहन किया जाता है ।  अबतक भारत में चल रही किसी भी प्रकार की बीमा योजनाओं में सम्मिलित रूप से इन समस्त सुविधाओं के लिए कोई भी एकल पॉलिसी नहीं है । यदि चिकित्सा सुविधा की बात करें तो हर बीमा योजना में चिकित्सा के खर्चे की एक सीमा निर्धारित होती है । उससे अधिक का खर्च नही दिया जा सकता किन्तु निगम की योजना में किसी भी प्रकार के खर्चे की सीमा निर्धारित नही होती है। यह खर्च एक रुपए से लेकर लाखो तक हो सकता है तथा पूरे वर्ष चलता रह सकता है ।  यही स्थिति अन्य लाभों के संदर्भ में भी लागू है ।
      किसी भी योजना में कमी शायद ही होती है । कमी होती है वो उसके कार्यान्वयन की अड़चनों में होती है । कर्मचारी राज्य बीमा योजना में भी कमी है इस बात को अस्वीकार नाही किया जा सकता है । सबसे बड़ी कमी है उसकी दी जाने वाली चिकित्सा सुविधाओं में । मैंने जो मुख्य कमी पाया है उनमें से कुछ का वर्णन निम्नवत है :-
1॰ कामगारों की संख्या के अनुसार एवं उनके कार्य क्षेत्र के पास चिकित्सा सुविधा का ना होना ।
2॰ चिकित्सालयों में पर्याप्त सुविधा का ना होना ।
3॰ चिकित्सालयों के समय और कामगारों के समय का सही मिलान ना होना – इसमें कई ऐसे चिकित्सालय और औषधालय हैं जिनके खुलने एवं बंद होने का समय ऐसा है जिसके कारण आवश्यकता की स्थिति में कामगार इसकी सुविधा नही ले पाते हैं ।  
4॰ ऊपर की तीन समस्याओं का निपटारा तो नियम एवं अधिनियम में बदलाव करके किया जा सकता है । परंतु सबसे विकटतम समस्या है कामगारों के प्रति चिकित्सा सेवा प्रदाता एवं हितलाभ सेवा प्रदाताओं का रवैया एवं व्यवहार । यूं तो कर्मचारी राज्य बीमा निगम का स्लोगान है “IP IS OUR VIP” , पर यदि यदि कभी बारीकी से निगम के औषधालयों , चिकित्सालयों तथा शाखाओं में जाकर देखा जाए तो इस स्लोगान से उलट ही स्थिति पाया जाता है । ऐसा नही है कि यह ब्यवहार उन्हे सिर्फ निचले स्तर के कार्मिकों से मिलता है । इस प्रकार का व्यवहार अधिकारी से लेकर चपरासी तक के हर स्तर के कार्मिकों द्वारा एक समान ही मिलता है । कोई विरला ही होगा जो इनसे ठीक से बात करता हो ।
5. सूचना का सही सम्प्रेषण भी एक विकट समस्या है । अखबारों एवं मीडिया में तो बड़े बड़े इश्तेहारों एवं आलेखों द्वारा निगम अपने उपलब्धियों का डंका भले ही पीटता रहे लेकिन इसके कार्यालयों , चिकित्सालयों एवं औशाधालयों में कामगारों को दी जाने वाले सुविधाओं के संबंध में, उनके हित के संबंध में कोई सूचना प्रदर्शित नही होती है । यहाँ तक कि कई केन्द्रों पर उनके खुलने एवं बंद होने के समय की भी सूचना प्रदर्शित नही की गई होती है । सूचना का सही सम्प्रेषण का यदि यह विभाग ख्याल रखे तो शायद कुछ प्रतिशत समस्याएँ हल हो सकती है । ऐसा नही है कि खराब व्यवहार एवं सूचना के प्रदर्शन की समस्या सिर्फ कर्मचारी राज्य बीमा निगम के कार्यालयों में ही है । ऐसी समस्या तो अधिकांश सरकारी कार्यालयों में है या हर उन कार्यालय में है जिनका संबंध गरीब तबके के लोगों से पड़ता है । चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी ।   
      इन समस्याओं के अलावा बहुत सारी कही- अनकही बातें हैं जिनसे लोगों का रोज सामना होता है । अब समस्याएँ हैं तो उनका समाधान किया जा सकता है परंतु यह निर्णय कि निगम की सुविधाओं के लिए किए जाने वाले अंशदान को स्वैच्छिक किया जाएगा , ठीक नही है । जैसे ही अंशदान को स्वैच्छिक किया जाएगा , मजदूर भले ही इन योजनाओं को लेने की रुचि दिखाये मालिक पक्ष इस बात के लिए असहमति व्यक्त करेगा तथा अंशदान करना ना पड़े इसके लिए सैकड़ों बहाने कानूनी तौर पर निकाल लेगा । व्यवसायी हमेशा अपने हित की बात ही सोचेगा । पर बेचार मजदूर तो कहीं का नही रह जाएगा । एक बार अंशदान स्वैच्छिक होते ही निगम की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी । जिसका फल यह होगा कि जो भी सुविधा निगम देती है , वो सुविधाएं देने में अड़चनें आएंगी । इसका दूरगामी प्रभाव यह होगा कि कालांतर में निगम एवं भविष्यनिधि संगठन को बंद करने की नौबत आ सकती है । कुछ कार्मिक एवं अधिकारी इस बात को महसूस करने लगे हैं कि निगम का भविष्य खतरे में है।

      परिवर्तन तो संसार का नियम है । स्थायित्व तो किसी में भी नही है , ना चर में ना चराचर में । लेकिन इतने वर्षों से स्थापित एक सेवा बंद होने से कितने लोगों पर इसका कुपराभाव पड़ेगा यह तो समय ही बताएगा , पर यह तो तय है कि मजदूर ही हर हाल में मारा जाएगा । 

रविवार, 1 मार्च 2015

अफसर करे ना चाकरी ...................

      नुक्कड़ पे बैठे चाय की चुस्की  लगा रहा था । चर्चा चल पड़ी वेतन वृद्धि और वेतन आयोग की । मेरे एक मित्र जो दैवयोग से सरकारी कर्मचारी भी थे , बड़े दुखी हो रहे थे । उनके व्यथा के अनुसार  पता नही इस वेतन आयोग में आशातीत वेतन की बढ़ोत्तरी मिलेगी भी या नही , बड़े शंसय की स्थिति है । गौर करने वाली बात तो है । चाय पे चर्चा चल पड़ी । दूसरे मित्र के अनुसार इससे भी अधिक गौर करने वाली बात ये है कि क्या मंहगाई सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए ही आती है या फिर प्राइवेट में काम करने वाले पर भी मंहगाई की मार आती है । जिस अनुपात में सरकारी कर्मचारी मंहगाई भत्ता , वेतन बढ़ोत्तरी पाता है उस अनुपात में प्राइवेट वालों का वेतन बढ़ते हुए कभी नही देखा गया है । अब जरा उनके द्वारा किए जाने वाले कामों की तुलना कर लिया जाये । एक सरकारी कर्मचारी को जितना वेतन मिलता है , अधिकतर प्राइवेट कंपनी में उतने ही वेतन में दो या कभी कभी तीन लोगों को काम करते हुए पाया जाता है । और फिर प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारियों को अधिकतर टार्गेट आधारित काम मिलते हैं जिसे समय पर निपटाना आवश्यक होता है । नही किए तो वेतन वृद्धि तो भूल ही जाइए , नौकरी जाने का खतरा हमेशा बना ही रहता है । इसके उलट सरकारी कर्मचारियों के कामों का अवलोकन किया जाये तो देखा जाता है कि अधिकतर बाबूजी समय पर कार्यालय नही आते , अगर आ भी गए तो मूड बना तो फाइलों पर काम हुआ , नही तो फिर कभी । ना तो वेतन कटौती का खतरा ना ही तो नौकरी जाने का खतरा । और यदि आवेदक दो एक चक्कर पूछ लिया तो साहब के नाराजगी का सामना अलग से करना पड़ता है । हो सकता है कि इस अपराध के लिए आपकी फाइल कहीं खो जाये और फॉर लगते रहिए चक्कर , खरीदते रहिए पैरागोन के मजबूत से मजबूत चप्पल, घिस भले ही जाये काम नही हो सकता । इसका एक उदाहरण और देखा गया । मेरे एक मित्र जो सरकारी मुलाज़िम हैं वो किसी जटील रोग से ग्रस्त है । जिस शहर में तैनात हैं वहाँ उनके इलाज की समुचित सुविधा ना होने के कारण उन्होने इलाज करवाने के लिए स्थानांतरण के लिए अपने विभाग को आवेदन दिया । उन्होने इस आशा से आवेदन किया था कि नए शहर में जाकर सही इलाज करवाकर वो पुनः स्वस्थ हो जाएँगे । आज उनके आवेदन के लगभग डेढ़ साल से ऊपर हो गया किन्तु विभाग ने ना तो स्थानांतरण किया ना ही तो उनके आवेदन की स्थिति के बारे में कोई जानकारी दिया । बेचारे इस इंतजार में बैठे हैं कि शायद कोई दया हो जाए और उनका स्थानांतरण हो जाये तो वो अपना इलाज करवा पाएंगे । पर इंतजार की घड़ियाँ लंबी होती जा रही है ,साथ ही बीमारी भी । ऐसा नही है कि उनके विभाग में स्थानांतरण पर किसी प्रकार का बैन लगा है । उनके आवेदन के बाद विभाग ने कई लोगो का स्थानांतरण दिया पर बेचारे मित्र का भाग्य उनका साथ नही दे रहा है । कौन कितना काम करता है यह इन घटनाओं से स्पष्ट हो जाता है । वार्ता में एक और मित्र आ टपके उन्होने हवाला दे डाला कि भाई साहब सरकारी दफ्तर में बिना रिश्वत के काम नही होता है । हमारे उस मित्र ने रिश्वत नही दिया होगा इसलिए उनका तबादला नही हो सका। हमने समझाया भाई साहब ऐसी बात नही है । सभी सरकारी मुलाज़िम रिश्वत लेते हो जरूरी नही है । फिर रिश्वत तो महा पाप है । उन्होने फट बोला , भाई तुम सीधे के सीधे ही रह गए। अब खुद ही देख लीजिये कि आजकल भारत में लोकायुक्त के छापों से एक से बढ़कर एक सरकारी कर्मचारी पकड़े जा रहे हैं और उनके घर से करोड़ों के धनराशी बरामद हो रही है । इनके ऐश्वर्य को देखकर बड़े से बड़ा धन कुबेर  शर्मा जाये । जैसे अल्लादीन का चिराग हासिल हो गया हो और उसे घिस-घिस कर अमीर बन गए । मेरे मित्र पुन्नू भाई ने बड़े ही मासूमियत से कहा,  “भैया इसमें गलत क्या है। जितने भी अफसर पकड़े गए है , काम तो करते ही रहे होंगे । और फिर मेहनत बहुत किया होगा तभी तो बहुत पैसा कमाए”। पुन्नू भाई ने बात तो सही कहा था । काम तो करते ही हैं , जिसने दक्षिणा दिया उसकी फाइल आगे बढ़ी , उसपर काम हुआ , और फिर काम के बदले मजदूरी तो बनती ही है ।  इसमें भला बुरा क्या है । हमारी चर्चा में और भी कई मित्र शामिल हो गए । सरकारी मुलाज़िम , काम करवाने के लिए सुविधा शुल्क , आरोप प्रत्यारोप की जैसे झड़ी चल पड़ी । हर मुख पर बस एक ही बात कि सरकारी कर्मचारी और उनका महिमामंडन ।

  चर्चा धीरे धीरे बहस में बदल गई । मैं लाख बीच बचाव करता रहा , सफाई देता रहा पर कोई मानने को तैयार नही कि सरकारी मुलाज़िम रिश्वतखोर नही हो सकता । मामला चाय की चुस्की से कही और जाते देख चाय वाले ने टोका , बाबूजी आपकी चर्चाओं से कुछ हो या ना हो , मेरे दुकान टूट सकती है । मेहरबानी करो और अपने अपने घर जाओ । हाँ एक बात और , मैं उस मित्र के लिए प्रार्थना करूंगा कि बिना रिश्वत दिये उस बीमार मित्र का स्थानांतरण जल्दी से हो जाए जिससे उनको सही इलाज मिल सके । और हाँ उनका तबादला होते ही मुझे भी खबर कीजिएगा । चलिये अब राह नापिए । जय राम जी की ।