बैठा टेलीविज़न के
चैनल बदल रहा था कि फिर एक समाचार आया । ऐसा समाचार कई दिनों से मीडिया मे चल रहा है जिसमे परीक्षा मे
नकल करने के मामले को दिखाया जा रहा है । इस खेल में कभी छात्र पीट रहे है तो कभी
अभिभावक पुलिस के डंडे का शिकार हो रहे है । कही कोई नेता इसके पक्ष में बोल रहा
है तो शहर के किसी कोने से इसकी निंदा भी की जा रही है । कुछ नेताओं का कहना है कि
मीडिया हमारे राज्य की छवि धूमिल करने के लिए ऐसा दिखा रही है । जीतने मुह उतनी
बाते । भाई इंसान का मुह ही तो है जिससे निकालने वाली बात पर किसी सरकार ने अबतक
किसी प्रकार के टैक्स का प्रावधान नही किया है । लिहाजा जिसे जो मर्जी वो कहता रहे
। कोई उन छात्रों के दिल में झांक कर देखे जो ऐसा अनैतिक कदम उठाने के लिए बाध्य
होते हैं । उनके अन्तर्मन की दशा एवं पीड़ा से तो जैसे किसी को कोई सरोकार ही नही
रहा । सब अपनी अपनी भैंस हांक रहे हैं । मैंने अपने मुहल्ले के बच्चा पार्टी की एक
आपातकालीन बैठक बुलाय एवं नकल के विरोध में उन्हे सचेत करने का प्रयास किया । छात्रों
के अन्तर्मन की बात जानने के लिए हमने यहाँ एक प्रयास किया जिसमें काफी चौंकाने
वाले तथ्य सामने आए ।
एक समय था जब
सरकारी नौकरी के लिए शिक्षा कोई बाध्यता नही थी , इंसान दस दर्जे ना भी पढ़ा
हो तो कम से कम उसे सरकारी नौकरी मिलने की आशा रहती थी चाहे भले ही वो ग्रुप डी के
पद ही क्यों ना हो । पर जब से सरकार ने इन पदों के लिए दसवी पास होना वाध्यता कर दिया, उसी समय से समस्या और गहरी होती चली गई । अब देखा जाये तो कई ऐसी सरकारी
नौकरियाँ हैं जिनमें भर्ती होने के लिए न्यूनतम शिक्षा के एक मानदंड तय कर दिये गए
हैं जैसे इंटर अथवा स्नातक स्तर पर भी कम से कम 60 अथवा 70 प्रतिशत अंकों की
वाध्यता । अब एक औसत दर्जे के बालक जो किसी कारणवश परीक्षा में 60 अथवा 70 प्रतिशत
अंक ना प्राप्त कर सके वो तो ऐसी नौकरी के लिए आवेदन कर ही नही सकते है । अब उसे
सिर्फ इस बात के लिए अपनी काबिलियत दिखाने के मौके से वंचित कर दिया जाता है कि प्रथमद्रष्ट्या
उसके पास समुचित अंक नही है । अब ऐसी स्थिति पैदा ना हो इसके लिए अभिभावक एवं
छात्र मिलकर इस नकल अभियान में शामिल हो जाते है । अब ये तो गारंटी नही है कि
जिन्होने स्कूल अथवा कालेज में अधिक अंक प्राप्त किया हो उनकी बौद्धिक क्षमता भी
उतनी ही प्रगाढ़ हो । और फिर अधिकांशतः नौकरी के क्षेत्र में स्कूल-कालेज में की गई
पढ़ाई की खास अहमियत नही होती । हर काम के अपने पैमाने होते हैं एवं उसी पैमाने के
अनुसार ही काम करना पड़ता है ।
दूसरी तरफ हम देखें
तो लगता है जैसे हमारे देश को पढे लिखे लोगों की आवश्यकता नही है । कहने के लिए
कोई कुछ भी कहता रहे परंतु अधिकतर राजनेता यही सोचते हैं । अन्यथा आजादी के इतने
सालों के बाद भी अधिकांश इलाकों में शिक्षा के स्तर में कोई बदलाव नही है । कही
स्कूलों में शिक्षक नही हैं तो कही आवश्यक साधनों का अभाव है । कई तो स्कूल ऐसे
देखे गए जहा एक कक्षा में पचास से भी अधिक छात्र । शिक्षको के वेतन भी ऐसे ही हैं , हजार दो
हजार रुपए के मासिक वेतन पर स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक हर गली मुहल्ले में मिल
जाएगा । अब समुचित पारश्रमिक जिस शिक्षक को नही मिल रहा हो वह अपने पेशे के प्रति
ईमानदारी करेगा इसकी आशा कभी की जा सकती है भला । अपने जीवन निर्वाह के लिए शिक्षण
के अलावा वो अपनी ऊर्जा कही और खर्च करेगा जिससे उसके एवं उसके परिवार का सामान्य
खर्च चल सके । ऐसा नही कि स्कूल प्रबंधन उस शिक्षक को वेतन देने लायक आय नही कर
पाता अथवा सरकार द्वारा समुचित पारश्रमिक एवं शिक्षक नही उपलब्ध करवाया जा सकता ।
पर ये हैरानी की बात है कि ऐसा क्यों नही किया जाता ।
अगली बात आती है
स्कूल कालेजो में दी जा रही शिक्षा रोजगार परक ना होना । अब प्राप्त शिक्षा के बाद
भी सही रोजगार में उस शिक्षा का इस्तेमाल ना हो सके तो ऐसी शिक्षा का क्या लाभ । अब
इतनी जटिलता के बाद भी सामाजिक स्तर एवं एक मृगतृष्णा की चाह में एक अभिभावक अपने
बच्चों पर शिक्षा अर्जन के लिए दबाव तो डालेगा ही । उच्च अंक की आकांक्षा में हर
नैतिक एवं अनैतिक कार्य करने के लिए दोनों बाध्य हो जाते है । जमाना भी इनकी व्यथा
एवं पीड़ा से वाकिफ है इसलिए नकल की प्रथा में सहयोग करने वालों की संख्या इसके
विरोध करने वालों की संख्या से अधिक है ।
और भी कई गूढ बातें
खुलकर सामने आई । मुझे याद है कि एक बार डॉ कलाम साहब ने सुझाव दिया था कि शिक्षा
एवं परीक्षा का माध्यम ऐसा बने जहां छात्रों को परीक्षा हाल में किताबें ले जाने
की खुली छूट हो । जहां तर्कसंगत रूप में ऐसी व्यवस्था हो वहाँ नकल करने वाले को पढ़ना
तो पड़ेगा ही, बिना पढे उसे पता ही नही चल पाएगा कि किस पृष्ठ में क्या है । अब ऐसी
स्थिति में नकल करेगा भी तो कैसे ।
बच्चो ने एक सुर
में कहना शुरू किया अंकल सरकार ने राइट तो एडुकेशन तो बना दिया पर हमें लगता है
राइट टू कॉपी इन एक्जाम्स का अधिकार हमें दिया जाना चाहिए । प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में कई नेता चाहे
सत्ता में हो या विपक्ष में नकल के समर्थक हैं । ऐसा नही है कि नकल की प्रथा एक
राज्य तक ही सीमित हो या फिर किसी एक प्रतियोगी परीक्षा तक सीमित हो । अब तो आई एस
तक की परीक्षा के पेपर लीक होने की बाते सुनने में आने लगी है । यह भी तो नकल करने
का एक प्रारूप है । अब हर जगह इसका चलन है ही तो फिर इसे वैध रूप में लागू कर छात्रों
के लिए संवैधानिक अधिकार क्यों न कर दिया जाए ।
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