सोमवार, 9 मार्च 2015

चली भैंस विमानबंदर


      अखबारों में लहराता सा समाचार पढ़ा | पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ कि जिस रनवे पर विमान के पास बिना टिकट और सुरक्षा जांच के कोई यात्री अथवा विमान कर्मी नहीं पहुँच सकता उसपर बिना टिकट और सुरक्षा स्टैम्प के कोई भैंस पहुँच सकती है | पर खबरों में आया है तो यकीन तो करना ही पडेगा | मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था "हवाई जहाज से भैंस टकराई |” आज तक तो हमने राजनैतिक दलों को टकराते देखा, धरती से उल्का पिंडों को टकराते देखा, कभी लड़ाकू विमानों से परिंदों को टकराते देखा , पर यह घटना तो अपने आप में एक ख़ास बात थी |
      लगता है जैसे भैंसों ने अखबारों की सुर्ख़ियों में बने रहने का प्रण कर रखा हो , तभी तो कभी किसी स्थान पर खोई हुई भैंस को ढूढ़ने के लिए पुलिस अधिकारीयों सहित महकमे के सारे आला अफसर लग गए थे | खोई हुई सरकारी संपत्ति चाहे कभी ना मिल पाई हो पर भैंस तो भैंस ही थी , मिल ही गई | कभी तो भैंस को महारानी एलिजाबेथ से अधिक महिमामंडित किया गया और देसी मीडिया में इस बात की धूम रही | माना जाता है कि भैंस अमूमन एक शांतिप्रिय जानवर है, अकिंचन ही कभी इस प्रजाति को आक्रामक देखा होगा | पर भैंस का इस कदर आक्रामक होना कि विमान से ही टकरा जाए या एक अद्वितीय घटना थी | अब इस घटना का मीडिया में चर्चा होना लाजिमी था | विमान से भैंस क्या टकराई , सारा शहर जैसे इस घटना से जीवंत हो उठा | शहर में एक पूरा अमला भैंस ढूंढो, भैंस पकड़ो अभियान में शामिल हो गया | लग रहा था जैसे आपातकाल आ गया हो | अबतक मीडिया का यह ट्रेंड रहा है कि समाचारों में कोई अनहोनी घटना जैसे कि बम विस्फोट , आतंकवादी आक्रमण की खबर आते ही यह वाक्य अवश्य पढ़ा जाता है कि ,”अबतक इस घटना की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली है |” जैसे कह रहे हों कि जब कोई संगठन जिम्मेदारी ले लेगा तब सुरक्षा एजेंसियां जांच कार्य संपन्न करेंगी | राजनैतिक दलों में यह ट्रेंड रहा है कि हर दल इस घटना के पीछे विरोधी दल का हाथ बताते हुए अपने सर से पल्ला झाड़ने की तैयारी कर लेता है | इस घटना पर मेरी पैनी नजर इस बात की तलाश में लगी हुई थी कि शायद कोई संगठन इसकी जिम्मेदारी ले ले , या फिर कोई राजनेता इस बात का ऐलान करे कि यह विरोधी दल का काम है , पर मेरी तलाश अधूरी ही रह गयी | हाँ एक बात अवश्य हुई , किसी राजनैतिक दल से सम्बंधित कुछ लोगों ने एक श्रद्धांजली मार्च का आयोजन किया एवं उस मरी हुई भैंस की आत्मा की शांति के लिए विरोध प्रदर्शन भी किया | धन्य हो मेरे वीरों, इस समय इसकी बहुत आवश्यकता थी जिसे आप सभी ने पूरा भी किया |
      हमारे देश में इस बात का प्रचलन सदा से ही रहा है कि जैसे ही कोई घटना हो जाए , तमाम तरह की चीजें शुरू हो जाती हैं मसलन कई तरह की सुरक्षा जांच , मॉक ड्रिल जैसे अन्य कार्य | यहां भी वही सब चल रहा है , सांप गुजरने की बाद लाठी पीटने की कवायद | इसके अलावा जो अहम बात होती है , वह है घटनास्थल के परिधि में कार्यरत अधिकारीयों को दोषारोपित कर या तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है या फिर स्थानांतरण | बस हो गयी खाना पूर्ति , फिर से वही धाक के तीन पात वाली स्थिति पे लौट चलो | यहाँ भी कुछ ऐसा हुआ | किसी ने यह नहीं सोचा कि उस बेचारे ने भरसक प्रयास तो किया ही होगा कमियों को दूर करने का | हो सकता है इसके लिए आवश्यक बजट , कार्मिकों को मुहैया ही नहीं करवाया गया हो , पर नहीं हलाल तो हर हाल में बकरी को ही होना है, सो हो गयी |
      हाले नगर, जहाँ या अख़बार कीच भी रहे , इन विशिष्ट भैंसों ने अपनी कुर्बानियों से यह तो दिखा ही दिया कि अब वक्त आ गया है कि भैंस पर चल रहे मुहावरे और लोकोक्तियों को बदला जाए और गयी भैंस पानी में , भैंस जैसी मोटी अक्ल इत्यादि कहने से इंसान तौबा करे अन्यथा अभी तो सिर्फ विमान को ही ठोका है क्या पता रुसवाइयों का यह सिलसिला चलता रहे तो भविष्य में और किस किस को ठोंक दें


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