रविवार, 20 सितंबर 2015

आध्यात्मिक एवं आधुनिक विज्ञान : एक तुलनात्मक विचार

बचपन से पुराणों एवं आध्यात्मिक पुस्तकों की कहानिया सुनता आया हूँ । उन कहानियों में से कुछ तो ऐसी कहानिया होती थी जिनकी सत्यता पर सहसा विश्वास ही नाही होता था । फिर यह मानकर कि यह  प्रभुलीला है और प्रभुलीला में हर असंभव कार्य भी संभव हो जाता है । इन विषयों पर ना तो कभी किसी से कोई चर्चा किया जाता है, ना ही तो कभी किसी प्रकार का बहस । बहस करना धर्म से च्युत होना माना जा सकता है । समय के पंख उड़ता रहा और बचपन से जवानी आती गई । मानव मन एकमात्र ऐसा मन है जो सुनी सुनाई बातों को मानने से पहले उन्हे तर्कों की कसौटी पर जरूर आजमाता है । अविस्यमरणीय बातों को सहज ही स्वीकार करना नाही चाहता है । ऐसी घटनाओं को या तो चमत्कार या फिर अलौकिक मानकर न चाहते हुए भी विश्वास किया जाता है । मुझे पंजाब की एक घटना याद है, उन दिनों मैं चंडीगढ़ में तैनात था । वहाँ मेरे मुलाक़ात एक वृद्ध फौजी से हुई । उन्होने आजादी के पूर्व का अपना अनुभव बताया जब उनके गाँव के आकाश से होकर पहली बार हवाई जहाज गुजरा था । जहाज के आवाज से गाँव के सारे लोग अपने घरों से बाहर आ गए, और उसे लोहे की चील कहकर संबोधित करते रहे । पूरा गाँव हफ्तों दहशत में था कि पता नहीं ये लोहे की चील क्यों आई  है । सही बात है जिन चीजों के बारे में हमें पूर्वानुमान या ज्ञान नहीं होता है, उन्हे देखकर आशंकित और भयग्रस्त हो जाना स्वाभाविक ही है । ऐसे ही आध्यात्मिक काहनियों के बारे में कहा जाता है । कुछ नास्तिक लोग इन घटनाओं को केवलमतर कहानी मानकर विश्वास ना करते हों पर कई सारे तथ्य ऐसे हैं जिनकी तुलना की जाए तो यह प्रतीत होता है कि हमारे पूर्वजों का अध्यात्म एवं विज्ञान आज के विज्ञान से सहसत्रों कोस आगे था । उस जमाने में विज्ञान को अध्यात्म से इस कार्न से जोड़ा गया होगा ताकि लोग इसका कड़ाई से पालन एवं अनुकरण करें । उनमें से कुछ वैज्ञानिक तटों का विवरण नीचे के कुछ पंक्तियों में करने का प्रयास किया जा रहा है ।
      सर्वप्रथम उल्लेख आता है पुष्पक विमान का । कहा जाता है कि देवताओं के पास पुष्पक विमान था जिसपर सवारी कर एक स्थान से दूसरे स्थान तक देवता भ्रमण किया करते थे । आधुनिक विज्ञान ने जबतक विमान का आविस्कार नहीं कर लिया तबतक इस कथा ही माना जाता रहा होगा परंतु जिस वैज्ञानिक ने इस जहाज की परिकल्पना की होगी उसे कहीं ना कहीं इस टाठी पर विश्वास रहा होगा कि पुष्पक विमान का स्वरूप अवश्य रहा होगा । बस सूके रूप को पुनः बनाने की आवश्यकता महसूस किया ही होगा ।

      कुछ और घटनाओं की बात करें तो पाया जाता है कि शिवजी से युद्ध करते हुए गणेश का सिर धड़ से अलग हो गया था । इसी प्रकार शिव जी के श्वसुर थे जिनके सिर को शिवगणों ने धड़ से अलग कर दिया था । दोनों ही घटनाओं में सिर का प्रत्यारोपन किया गया था । गणेश के सिर पर हाथी के शावक का तो शिवजी के श्वसुर के सिर पर बकरे के सिर का । इस अंग प्रत्यारोपण की घटना को लोग भले ही ना मानें पर आधुनिक विज्ञान ने मानव अंग प्रत्यारोपन के साथ ही अब सिर प्रत्यारोपण का प्रयास भी प्रारम्भ किया है ।

      माँ भगवती दुर्गा के साथ दानवों के युद्ध में जिक्र आता है रक्त बीज का । रक्तबीज की जितनी रक्त की बूंदें धरती पर गिरती उतने ही रक्तबीज पुनः जीवीत होकर खड़े होकर लड़ने लग जाते थे । इस घटना को यदि क्लोनिंग पद्धति का एक विराट स्वरूप मान सकते हैं । आज के समय में क्लोनिंग का जो स्वरूप है उसे उस काल के क्लोनिंग का एक छोटा सा रूप ही माना जा सकता है । इस घटना में कुछ रोबोटिक्स को भी समाहित किया जा सकता है । आज के समय में कुछ स्मार्ट रोबोट बनाए जा रहे हैं जो मनुष्यों की तरह से हर काम करते हैं ।

      भगवान श्रीराम के बनवास का समय पूरा होते ही उन्होने अयोध्या में बैठे अपनी माता को संदेश भेजा कि माँ मैं आ रहा हूँ । उनके इस सम्प्रेषण को माँ ने सुना भी । आधुनिक विज्ञान ने सूचना सम्प्रेषण के कई आविस्कार किए परंतु भगवान राम द्वारा संप्रेषित सूचना के माध्यम के विषय मे सोचें तो पता लगता है कि उसी तकनीकी का आज एक सूक्ष्म रूप मोबाइल और टेलीविज़न है ।

      भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय की ऐतिहासिक घटना का भी विवरण जिक्र करने लायक है । जब देवकी के गर्भ में सातवाँ बालक पल रहा था । योगमाया का आवाहन कर उस गर्भस्थ शिशु को माया से रोहिणी के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया गया । इस प्रक्रिया के दौरान चाहे जो कुछ भी कहानी रही हो पर वैज्ञानिक तथ्य तो यही है कि एक गर्भ से दूसरे गर्भ में गर्भस्थ शिशु का प्रत्यारोपन किया गया । आधुनिक विघयान ने बहुत परिश्रम से गर्भ प्रत्यारोपण की प्रक्रिया का पुनः आविष्कार किया और निःसंतान दंपत्तियों एवं संतान सुख देने का प्रयास प्रारम्भ किया है ।

      भगवान कृष्ण के बचपन की घटना याद आती है । कालिया नामक नाग ने यामिना में अपना घर बना लिया था । उसके प्रभाव से यमुना के जल में विश व्याप्त हो गया था । कृष्ण ने बालरूप में ही कालिया का दमन किया और यमुना को विषमुख्त किया । आज की यमुना को यदि देखें तो कृष्ण के काल की वह घटना पुनरावृति करती हुई प्रतीत होती है । आज की यमुना सह समस्त नदियां प्रदूषण से इस कदर त्रस्त हैं कि इनका जल विषाक्त हो गया है । मुझे तो गीता में भगवान श्रीकृष्ण की बात याद आती है जिसमें उन्होने कहा था कि, “यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति........................................” अर्थात धर्म की हानि होने पर मैं पुनः अवतार लूँगा । अब तो उस प्रभु की आने का इंतजार है जो इस विभीषिका से यमुना सहित समस्त नदियों के जल को पुनः पवित्र करे ।  
  

      ऐसी कई घटनाएँ हैं जिनकी तुलना यदि आधुनिक विज्ञान से वैदिक ज्ञान के साथ किया जाए तो हमें ज्ञात होगा कि आज के समय में वेदों एवं पुराणों की घटना एवं कहानियों को मात्र कथा मानकर ही ना चलें अपितु इसपर विचार करें एवं ऐसी खोजों को पुनर्जीवन देने का प्रयास करें जिनका वर्णन इन पुस्तकों आता है , तथा इस प्रक्रिया से मानवता को नवजीवन की राह पर ले जाएँ । 

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