सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया
ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा
जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका विजय के बाद
कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी
को सरवार भी कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी
ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र
पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक
तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में
हैं।
एक अन्य मत के
अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की
ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री
राम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने
के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए ओर भोजन तथा दान समंग्री ग्रहण नहीं
की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए।
सरयूपारीण
ब्राहमणों के मुख्य गाँव :-
गर्ग (शुक्ल- वंश)
गर्ग ऋषि के तेरह
लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो
तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|
(१) मामखोर (२) खखाइज खोर
(३) भेंडी
(४) बकरूआं
(५) अकोलियाँ
(६) भरवलियाँ
(७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन
(१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|
उपगर्ग (शुक्ल-वंश)
उपगर्ग के छ: गाँव
जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|
बरवां (२) चांदां
(३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार
यही मूलत: गाँव है
जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल
बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी
सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
गौतम (मिश्र-वंश)
गौतम ऋषि के छ:
पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४)
चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी
इन्ही छ: गांवों से
गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये
सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
उप गौतम
(मिश्र-वंश)
उप गौतम यानि गौतम
के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४)
भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा
इन गांवों से उप
गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है|
वत्स गोत्र
( मिश्र- वंश)
वत्स ऋषि के नौ
पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|
(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४)
नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा
बताया जाता है की
इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
कौशिक गोत्र
(मिश्र-वंश)
तीन गांवों से इनकी
उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी
बशिष्ट गोत्र
(मिश्र-वंश)
इनका निवास भी इन
तीन गांवों में बताई जाती है|
(१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी
शांडिल्य गोत्र (
तिवारी,त्रिपाठी -वंश)
शांडिल्य ऋषि के
बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|
(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ
(४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७)
बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है
इन्ही बारह गांवों
से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य- त्रि -प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का
प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा- गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन
चारों का अस्तित्व कायम है|
उप शांडिल्य (
तिवारी- त्रिपाठी, वंश)
इनके छ: गाँव बताये
जाते हैं जी निम्नवत हैं|
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४)
जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा
भार्गव गोत्र
(तिवारी या त्रिपाठी वंश)
भार्गव ऋषि के चार
पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है|
(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक
(३) चेतियाँ
(४) मदनपुर
भारद्वाज गोत्र
(दुबे वंश)
भारद्वाज ऋषि के
चार पुत्र बाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|
(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४)
गरयापार
कन्चनियाँ और
लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं
लेकिन इनके पिता क्रमश:
उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे
लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर
लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग
पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गादी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें|
सरार के दुबे के
वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
सावरण गोत्र (
पाण्डेय वंश)
सावरण ऋषि के तीन
पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष
माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|
(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट
(चमरूपट्टी)
सांकेत गोत्र
(मलांव के पाण्डेय वंश)
सांकेत ऋषि के तीन
पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बाते जाते हैं|
(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ
कश्यप गोत्र (त्रिफला
के पाण्डेय वंश)
इन तीन गांवों से
बताये जाते हैं|
(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ
(३) ढडमढीयाँ
ओझा वंश
इन तीन गांवों से
बताये जाते हैं|
(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां
चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)
इनके लिए तीन
गांवों का उल्लेख मिलता है|
(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां
एक गाँव कुसहाँ का
उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है|सरयूपारीण ब्राह्मण
सरयूपारीण ब्राह्मण
या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए
ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका
विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया
था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते
हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र
पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक
तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में
हैं।
एक अन्य मत के
अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की
ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री
राम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने
के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए ओर भोजन तथा दान समंग्री ग्रहण नहीं
की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए।
सरयूपारीण
ब्राहमणों के मुख्य गाँव :-
गर्ग (शुक्ल- वंश)
गर्ग ऋषि के तेरह
लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो
तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|
(१) मामखोर (२) खखाइज खोर
(३) भेंडी
(४) बकरूआं
(५) अकोलियाँ
(६) भरवलियाँ
(७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन
(१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|
उपगर्ग (शुक्ल-वंश)
उपगर्ग के छ: गाँव
जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|
बरवां (२) चांदां
(३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार
यही मूलत: गाँव है
जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल
बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी
सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
गौतम (मिश्र-वंश)
गौतम ऋषि के छ:
पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४)
चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी
इन्ही छ: गांवों से
गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये
सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
उप गौतम
(मिश्र-वंश)
उप गौतम यानि गौतम
के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४)
भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा
इन गांवों से उप
गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है|
वत्स गोत्र
( मिश्र- वंश)
वत्स ऋषि के नौ
पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|
(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४)
नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा
बताया जाता है की
इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
कौशिक गोत्र
(मिश्र-वंश)
तीन गांवों से इनकी
उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी
बशिष्ट गोत्र
(मिश्र-वंश)
इनका निवास भी इन
तीन गांवों में बताई जाती है|
(१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी
शांडिल्य गोत्र (
तिवारी,त्रिपाठी -वंश)
शांडिल्य ऋषि के
बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|
(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ
(४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७)
बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है
इन्ही बारह गांवों
से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य- त्रि -प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का
प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा- गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन
चारों का अस्तित्व कायम है|
उप शांडिल्य (
तिवारी- त्रिपाठी, वंश)
इनके छ: गाँव बताये
जाते हैं जी निम्नवत हैं|
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४)
जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा
भार्गव गोत्र
(तिवारी या त्रिपाठी वंश)
भार्गव ऋषि के चार
पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है|
(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक
(३) चेतियाँ
(४) मदनपुर
भारद्वाज गोत्र
(दुबे वंश)
भारद्वाज ऋषि के
चार पुत्र बाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|
(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४)
गरयापार
कन्चनियाँ और
लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं
लेकिन इनके पिता क्रमश:
उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे
लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर
लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग
पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गादी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें|
सरार के दुबे के
वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
सावरण गोत्र (
पाण्डेय वंश)
सावरण ऋषि के तीन
पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष
माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|
(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट
(चमरूपट्टी)
सांकेत गोत्र
(मलांव के पाण्डेय वंश)
सांकेत ऋषि के तीन
पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बाते जाते हैं|
(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ
कश्यप गोत्र
(त्रिफला के पाण्डेय वंश)
इन तीन गांवों से
बताये जाते हैं|
(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ
(३) ढडमढीयाँ
ओझा वंश
इन तीन गांवों से
बताये जाते हैं|
(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां
चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)
इनके लिए तीन
गांवों का उल्लेख मिलता है|
(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां
एक गाँव कुसहाँ का
उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है|सरयूपारीण ब्राह्मण
सरयूपारीण ब्राह्मण
या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए
ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम ने लंका
विजय के बाद कान्यकुब्ज ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया
था। सरयु नदी को सरवार भी कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते
हैं। सरयुपारी ब्राह्मण पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र
पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक
तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में
हैं।
एक अन्य मत के
अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की
ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री
राम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने
के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए ओर भोजन तथा दान समंग्री ग्रहण नहीं
की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए।
सरयूपारीण
ब्राहमणों के मुख्य गाँव :-
गर्ग (शुक्ल- वंश)
गर्ग ऋषि के तेरह
लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो
तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|
(१) मामखोर (२) खखाइज खोर
(३) भेंडी
(४) बकरूआं
(५) अकोलियाँ
(६) भरवलियाँ
(७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन
(१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|
उपगर्ग (शुक्ल-वंश)
उपगर्ग के छ: गाँव
जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|
बरवां (२) चांदां
(३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार
यही मूलत: गाँव है
जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल
बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी
सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
गौतम (मिश्र-वंश)
गौतम ऋषि के छ:
पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४)
चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी
इन्ही छ: गांवों से
गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये
सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
उप गौतम
(मिश्र-वंश)
उप गौतम यानि गौतम
के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४)
भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा
इन गांवों से उप
गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है|
वत्स गोत्र
( मिश्र- वंश)
वत्स ऋषि के नौ पुत्र
माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|
(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४)
नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा
बताया जाता है की
इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
कौशिक गोत्र
(मिश्र-वंश)
तीन गांवों से इनकी
उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी
बशिष्ट गोत्र
(मिश्र-वंश)
इनका निवास भी इन
तीन गांवों में बताई जाती है|
(१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी
शांडिल्य गोत्र (
तिवारी,त्रिपाठी -वंश)
शांडिल्य ऋषि के बारह
पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|
(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ
(४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७)
बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है
इन्ही बारह गांवों
से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य- त्रि -प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का
प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा- गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन
चारों का अस्तित्व कायम है|
उप शांडिल्य (
तिवारी- त्रिपाठी, वंश)
इनके छ: गाँव बताये
जाते हैं जी निम्नवत हैं|
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४)
जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा
भार्गव गोत्र
(तिवारी या त्रिपाठी वंश)
भार्गव ऋषि के चार
पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है|
(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक
(३) चेतियाँ
(४) मदनपुर
भारद्वाज गोत्र
(दुबे वंश)
भारद्वाज ऋषि के
चार पुत्र बाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|
(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४)
गरयापार
कन्चनियाँ और
लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं
लेकिन इनके पिता क्रमश:
उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे
लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर
लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग
पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गादी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें|
सरार के दुबे के
वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
सावरण गोत्र (
पाण्डेय वंश)
सावरण ऋषि के तीन
पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष
माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|
(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट
(चमरूपट्टी)
सांकेत गोत्र
(मलांव के पाण्डेय वंश)
सांकेत ऋषि के तीन
पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बाते जाते हैं|
(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ
कश्यप गोत्र
(त्रिफला के पाण्डेय वंश)
इन तीन गांवों से
बताये जाते हैं|
(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ
(३) ढडमढीयाँ
ओझा वंश
इन तीन गांवों से
बताये जाते हैं|
(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां
चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)
इनके लिए तीन
गांवों का उल्लेख मिलता है|
(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां
एक गाँव कुसहाँ का
उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है|सरयूपारीण ब्राह्मण
सरयूपारीण ब्राह्मण
या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए
ब्राह्मणों को कहा जाता है। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मणो कि शाखा है। श्रीराम
ने लंका विजय के बाद कान्यकुब्ज
ब्राह्मणों से यज्ञ करवाकर उन्हे सरयु पार स्थापित किया था। सरयु नदी को सरवार भी
कहते थे। ईसी से ये ब्राह्मण सरयुपारी ब्राह्मण कहलाते हैं। सरयुपारी ब्राह्मण
पूर्वी उत्तरप्रदेश, उत्तरी मध्यप्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में भी
होते हैं। मुख्य सरवार क्षेत्र पश्चिम मे उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या शहर से
लेकर पुर्व मे बिहार के छपरा तक तथा उत्तर मे सौनौली से लेकर दक्षिण मे मध्यप्रदेश
के रींवा शहर तक है। काशी, प्रयाग, रीवा, बस्ती, गोरखपुर, अयोध्या, छपरा इत्यादि नगर सरवार भूखण्ड में
हैं।
एक अन्य मत के
अनुसार श्री राम ने कान्यकुब्जो को सरयु पार नहीं बसाया था बल्कि रावण जो की
ब्राह्मण थे उनकी हत्या करने पर ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए जब श्री
राम ने भोजन ओर दान के लिए ब्राह्मणों को आमंत्रित किया तो जो ब्राह्मण स्नान करने
के बहाने से सरयू नदी पार करके उस पार चले गए ओर भोजन तथा दान समंग्री ग्रहण नहीं
की वे ब्राह्मण सरयुपारीन ब्राह्मण कहे गए।
सरयूपारीण
ब्राहमणों के मुख्य गाँव :-
गर्ग (शुक्ल- वंश)
गर्ग ऋषि के तेरह
लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो
तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|
(१) मामखोर (२) खखाइज खोर
(३) भेंडी
(४) बकरूआं
(५) अकोलियाँ
(६) भरवलियाँ
(७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन
(१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|
उपगर्ग (शुक्ल-वंश)
उपगर्ग के छ: गाँव
जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|
बरवां (२) चांदां
(३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार
यही मूलत: गाँव है
जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल
बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी
सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
गौतम (मिश्र-वंश)
गौतम ऋषि के छ:
पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४)
चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी
इन्ही छ: गांवों से
गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये
सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|
उप गौतम
(मिश्र-वंश)
उप गौतम यानि गौतम
के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४)
भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा
इन गांवों से उप
गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है|
वत्स गोत्र
( मिश्र- वंश)
वत्स ऋषि के नौ
पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|
(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४)
नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा
बताया जाता है की
इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
कौशिक गोत्र
(मिश्र-वंश)
तीन गांवों से इनकी
उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी
बशिष्ट गोत्र
(मिश्र-वंश)
इनका निवास भी इन
तीन गांवों में बताई जाती है|
(१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी
शांडिल्य गोत्र (
तिवारी,त्रिपाठी -वंश)
शांडिल्य ऋषि के
बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|
(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ
(४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७)
बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है
इन्ही बारह गांवों
से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य- त्रि -प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का
प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा- गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन
चारों का अस्तित्व कायम है|
उप शांडिल्य (
तिवारी- त्रिपाठी, वंश)
इनके छ: गाँव बताये
जाते हैं जी निम्नवत हैं|
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४)
जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा
भार्गव गोत्र
(तिवारी या त्रिपाठी वंश)
भार्गव ऋषि के चार
पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है|
(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक
(३) चेतियाँ
(४) मदनपुर
भारद्वाज गोत्र
(दुबे वंश)
भारद्वाज ऋषि के
चार पुत्र बाये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|
(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४)
गरयापार
कन्चनियाँ और
लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं
लेकिन इनके पिता क्रमश:
उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे
लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर
लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग
पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गादी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें|
सरार के दुबे के
वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|
सावरण गोत्र (
पाण्डेय वंश)
सावरण ऋषि के तीन
पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष
माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं|
(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट
(चमरूपट्टी)
सांकेत गोत्र
(मलांव के पाण्डेय वंश)
सांकेत ऋषि के तीन
पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बाते जाते हैं|
(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ
कश्यप गोत्र
(त्रिफला के पाण्डेय वंश)
इन तीन गांवों से
बताये जाते हैं|
(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ
(३) ढडमढीयाँ
ओझा वंश
इन तीन गांवों से
बताये जाते हैं|
(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां
चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)
इनके लिए तीन
गांवों का उल्लेख मिलता है|
(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां
एक गाँव कुसहाँ का
उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी के लिये आभार।हम शीघ्र ही आपसे जुड़ेंगे।