जुमानी की माँ
बहुत दुखी थी,पति कैंसर से
मर गए। एक बेटा और बेटी सर्प दंश से काल कलवित हो गए। एक बेटी बची थी,वह भी अर्ध विक्षिप्त रहती थी। गांव वालो के
अनुसार उनके घर पर ब्रह्मराक्षस का साया था। एक दिन पडोसी के दामाद से भेंट हुई,उनहोंने सुन रखा था कि दामादजी का बड़े बड़े
तांत्रिको से परिचय है।बात हुई। प्रेत निवारण के लिए उनके साथ नेपाल के तराई के एक
मशहूर तांत्रिक से बात हुई।एक लाख रुपया में बात तय हुई। दोनों घर आ गए। नियत दिन
दामादजी बड़ी सी गाड़ी में तीन चार पंडितों को लेकर पहुंचे।पण्डितों को पहले ही बता
दिया गया था कि जैसे ही इशारा हो,ढेर सारा धुवां किया जाए और अगले इशारे में लपक कर गाड़ी में बैठ जाएं।
रुपया अग्रिम ले लिया गया। पूजा प्रारम्भ हुई।हवन प्रारम्भ हुआ।जोर के धुएं में
बेटी बेहोश हो गई। दामादजी ने क़ज़ा कि प्रेत भाग गया। पंडितों को इशारा किया,सब लपक कर गाड़ी में बैठ गए और निकल पड़े।
हमने पूछा कि प्रेत सच में उतर गया क्या?
दामादजी ने
बताया कि जब भी मां बेटी मुझे देखती हैं,बेटी का पागलपन शांत हो जाता है,उसकी माँ भी अब बिलखती नहिं है। प्रेत भागने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या
हो सकता है।
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