बुधवार, 6 मार्च 2019

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अंग्रेजी में अनुवाद कीजिए। (अक 4०)

"विधिसम्मत शासन" किसी सभ्य लोकतांत्रिक राजतंत्र कं शासन का आधारभूत नियम है । हमारी सांविधानिक स्कीम बिधि क नियम की संकल्पना पर आधारित है जिसका हमने अनुसरण किया है और जिसे हमने आत्मसमर्पिंत किया है । प्रत्येक व्यक्ति अविवादित रूप से वैयक्तिक रूप से या सामूहिक रूप से. बिधि की सर्वोच्चता कं अधीन है । कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना भी बडा हो, कितना भी सशक्त और धनवान हो, विधि से ऊपर नहीं है भले ही वह कोई पुरूष हो या रत्री । विधिसम्मत शासन की स्थापना कं लिये संविधान ने देश की न्यायपालिका को विशिष्ट कार्य सौंपा है । विधिसम्मत शासन कंवल न्यायालयों द्वारा ही अपनी विशिष्टियों को वर्णित करता है और अपनी संकल्पना को स्थापित करता है । न्यायपालिका को प्रभावी रूप से और सच्ची भावना से जो उसे यथार्थत: सौंपी गई है, अपने कर्तव्यों और कृत्यों को पूरा करने कं लिये न्यायालयों की गरिमा और प्राधिकार का सम्मान किया जाना चाहिये 'और इसका हर कीमत पर संरक्षण किया जाना चाहिये । स्वतन्त्रता कं लगभग 5० वर्ष पूरे होने कं पश्चात् भी देश की न्यायपालिका सतत् संकट में है और इसे अन्दर तथा बाहर से संकटापन्न किया जा रहा है । समय की आवश्यकता है कि न्यायपालिका की स्वतन्त्रता कं लिये लोगों में पुन: विस्वास उत्पन्न किया जाए । इसकी निष्पक्षता और विधि कं गौरव को कायम रखा जाए, इसकी संरक्षा की जाए और इसे पूर्ण रूप से लागू किया जाए । न्यायालयों में विस्वास को, जो लोगों में है, मलिन करने, कम करने और किसी व्यक्ति कं अवमानपूर्ण व्यवहार द्वारा इसे समाप्त करने कं लिये किसी भी प्रकार से अनुज्ञात नहीँ किया जा सकता । संस्था को अभ्याघात से बचाने कं लिए एकमात्र हथियार न्यायालय की अवमान संबंधी कार्यवाही है जो न्यायिक प्रतिस्थापन का कवच है और जब भी इसकी आवश्यकता हो यह किसी भी व्यक्ति की गर्दन तक पहुंच
सकता है चाहे वह कितना भी बडा या पहुंच से बाहर हो ।

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