ना चीखी , ना चिल्लाई ,
ना ही
पीटा छाती उसने,
पास खड़ी
सखियाँ सोचें हैरत से ,
हुआ अजूबा
कैसा भाई ,
ना रोइ तो
मर जाएगी,
विधवा सखी
विचारी |
करें जतन
अब कैसे हम सब मिलकर सारी |
उसकी
तारीफ के कसीदे पढ़े ,
महानता की कहानियां गढ़े ,
ना लब
हिले , ना नैनों
के पट झपके ,
ना ही नीर
बहे नैनन से |
पास खड़ी
बुढ़िया माई ने ,
हौले से
कफ़न सरकाया ,
सोये शव
का निष्छल मुख , झट से पट से बाहर आया |
ना लब
हिले , ना नैनों
के पट झपके ,
ना ही नीर
बहे नैनन से |
नब्बे साल
की बुढ़िया दाई ,
बैठी यह
सब देख रही थी ,
कैसे रोये
कोमल बिटिया , चुपचाप
ये सोच रही थी |
फौजी के
चुटकी नौनिहाल को ,
झट से
उसने झपट लिया,
बेवा के
सूने गोदी में ,
लेजाकर
उसको पटक दिया |
हां लल्ले
कहकर, नौनिहाल
से लिपट पडी,
खोई -खोई सूनी आँखों से
अंसुअन की
धारा फूट पडी |
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