गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

जब फौजी का शव घर आया (अल्फ्रेड लार्ड टेन्निसन की कविता "होम दे ब्रॉट हर वारियर डेड" का अनुवाद)


ना चीखी , ना चिल्लाई ,
ना ही पीटा छाती उसने,
पास खड़ी सखियाँ सोचें हैरत से  ,
हुआ अजूबा कैसा भाई ,
ना रोइ तो मर जाएगी,
विधवा सखी विचारी
करें जतन अब कैसे हम सब मिलकर सारी  |

उसकी तारीफ के कसीदे पढ़े ,
 महानता की कहानियां गढ़े ,
ना लब हिले , ना नैनों के पट झपके ,
ना ही नीर बहे नैनन से |

पास खड़ी बुढ़िया माई ने ,
हौले से कफ़न सरकाया ,
सोये शव का निष्छल मुख , झट से पट से बाहर आया |
ना लब हिले , ना नैनों के पट झपके ,
ना ही नीर बहे नैनन से |

नब्बे साल की बुढ़िया दाई ,
बैठी यह सब देख रही थी ,
कैसे रोये कोमल बिटिया , चुपचाप ये सोच रही थी |
फौजी के चुटकी नौनिहाल को ,
झट से उसने झपट लिया,
बेवा के सूने गोदी में ,
लेजाकर उसको पटक दिया |

हां लल्ले कहकर, नौनिहाल से लिपट पडी,
खोई -खोई सूनी आँखों से

अंसुअन की धारा फूट पडी

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