मंगलवार, 17 नवंबर 2015

कसैला है मौसम कुछ मीठा बनाएँ

 -डॉ. गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर 

दोस्ती निभानी   है तो ऐसे निभाएँ   
कभी तुम बुलाओ कभी हम   बुलाएँ
 शिकवों से गीले  हैं  कागज़ के  रिश्ते
 ऐसा न  खींचो कि फट ही वो जाएँ
 बहुत बढ़  गई हैं दूरियाँ  हमारी 
जो कुछ तुम घटाओ तो  हम भी घटाएँ 
भूत  याद रखने से सर फट रहा है
 कुछ तुम भी भुलाओ कुछ हम भी भुलाएँ
 मंदिर औ मस्जिद अँधेरे बहुत हैं 
चलो इनकी देहरी पे दीपक जलाएँ 
माना कि तुमने सताया बहुत है 
पे वाजिब नहीं है कि हम भी सताएँ 
गाँवों के बाहर सियारों का खतरा 
भेड़िए बेधड़क अब घरों तक भी आएँ 
रोशनी में  चमकें  तो चमकें भी  कैसे
 मैली हैं मन की जो  चारों दिशाएँ 
मनों में मलिनता है  कूड़ा है घर में 
गर लानी खुशहाली  है  कचरा हटाएँ 
परब है दिवाली दिवाला है घर में 
कसैला है मौसम कुछ मीठा बनाएँ 
हम ये न भूलें कि बच्चे  थे हम भी
 बच्चों को जब भी हम अपने रुलाएँ 
                                                                                                                                

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