सोमवार, 14 अगस्त 2017

रिक्शा चालक से साहित्य सम्मान तक – मनोरंजन व्यापारी : Times of India के अंग्रेजी समाचार से साभार अनुवाद

            सन 1980 की बात है | उमस भरी भयंकर गर्मी पड़ रही थी | कलकत्ता के यादवपुर क्षेत्र में  विद्यासागर ज्योतिष रॉय कॉलेज के पास रिक्शा स्टेण्ड पर अपनी रिक्शा में बैठा एक आदमी कोई पुस्तक पढ़ रहा था | इस पुस्तक में एक शब्द 'जिजीविषा' पर आकर वह रुक गया जिसका अर्थ बहुत प्रयास के बाद भी समझ में नहीं पा रहा था | उस शब्द के अर्थ के बारे में अपने साथी रिक्शा चालकों से उसने चर्चा किया पर उसके शंका का कोई समाधान तो कोई कर नहीं पाया उलटे उसे हंसी का पात्र बना डाला | उस शब्द के बारे में जानने की उत्कंठा उसे इस कालेज के पास ले आई | यहाँ उसे सवारी के साथ अपने शंका समाधान का श्रोत भी मिलने की संभावना थी |
            कालेज के मुख्य द्वार से एक अधेड़ उम्र की महिला को आता देख उस पुस्तक को सीट के नीचे सरका दिया | साधारण सी सूती साड़ी में कंधे पर एक थैला लटकाये पास आती वो महिला कुछ युवतियों से बाते करते हुए उसके रिक्शा की तरफ आयीं | उसने मन ही मन सोचा, “शायद ये कोई प्रोफ़ेसर हैं, इनसे मेरे प्रश्नों का जवाब मिल सकता है"!
            कालेज से बस स्टेण्ड की दूरी मात्र 2 किलोमीटर थी | उहापोह की स्थिति से गुजरता हुआ वह आगे बढ़ा जा रहा था | पूछूँ या न पूछूँ यही द्वन्द उसके मन में लगातार चल रहा था | यात्री का गन्तव्य आ गया | वह भी द्वन्द की स्थित से बाहर आते हुए बोल पड़ा, “क्या मैं आपसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ ?” सवारी के हाँ कहते ही पूछ बैठा, “जिजीविषा का अर्थ क्या होता है?” उसके प्रश्न पर वो अवाक थीं, धीरे से उन्होंने बताया 'जीने की इच्छा'| शब्द का अर्थ जानकार उसे काफी राहत मिली | उसे यह भान नहीं था कि जिससे यह प्रश्न किया गया वे उस पुस्तक की लेखिका थीं |
            अपने बटुए से रिक्शा वाले को देने के लिए पैसा निकलते हुए उन्होंने उससे पूछा, 'तुम्हे यह शब्द कहाँ से मिला?'उसने रिक्शा के पिछली सीट के नीचे के बक्से से एक पुस्तक निकाला और कहा, 'मैं अग्निगर्भा नामक एक उपन्यास पढ़ रहा था | इसमें यह शब्द मिला जो मुझे काफी देर से बेचैन किये हुए था |'
            उस महिला ने उससे पूछा, 'क्या तुम मेरी पत्रिका के लिए कहानी लिखोगे |'
            यह प्रस्ताव उसके लिए काफी हैरानी भरा  था बड़ी हैरानी से उसने देखा और कहा, 'मैं अनपढ़ हूँ, कभी स्कूल नहीं गया | आजतक जितना भी पढ़ना सीखा हूँ वह अपने प्रयास से सीखा हूँ | आज भी शब्दों को जोड़- तोड़कर पढ़ता हूँ| ऐसे में लिखने का काम कैसे कर सकता हूँ ?'
            उसके नकारात्मक उत्तर से वो अविचलित रहीं | उन्होंने कहा कि मेरी यह पत्रिका तुम जैसे गरीब, आदिवासी  एवं समाज के समस्त पिछड़े लोगों से संबंधित कहानियों पर आधारित है | और तुम वखूबी इसमें लिख सकते हो |
            उसने कहा कि प्रयास करेगा | और उनसे पता माँगा | उसने कहा कि यदि लिख सका तो अवश्य ही आपसे मिलने आऊंगा | उन्होंने उसे अपना पता लिखकर दिया और यह कहते हुए अपनी बस की तरफ बढ़ चलीं कि मैं तुम्हारे रचना का इन्तजार करुँगी |
            उस कागज़ पर लिखे विवरण को देख रिक्शावाला हतप्रभ रह गया | वो महिला महाश्वेता देवी थीं जो अग्निगर्भा नामक उपन्यास की लेखिका थीं जिसे वह पद रहा था |

            इस मुलाक़ात ने उसके जीवन में परिवर्तन ला दिया | अबतक जो सिर्फ पढ़ना ही जानता था पर रचना के विषय में कभी सोच भी नहीं सकता था उसके साहित्यकार बनने का मार्ग महाश्वेता देवी ने प्रशस्त कर दिया | उन्होंने उसे लिखने के लिए प्रोत्साहित किया | ये श्री मनोरंजन व्यापारी हैं जो ऐसे पहले रचनाकार हैं जिन्हें पश्चिम बंगाल का सर्वश्रेष्ठ साहित्य पुरस्कार 'बंगाल अकादमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ | अबतक उनके 100 लघुकथा एवं नौ उपन्यास प्रकाशित हो चुके  हैं | उनकी पहली रचना रिक्शावालों पर आधारित 'रिक्शा चालाई' थी जिसे पूरा करने में लगभग एक माह लग गया था |पंद्रह पन्ने की यह कहानी बड़ी ही खराब लिखावट और अशुद्धियों से भरी हुई थी | पर इसके प्रकाशन के बाद उनकी रचना की मांग आने लगी | यह रचना 'बत्रिका' नामक पार्टीका में प्रकाशित हुई थी | इस प्रकाशन के बाद वो 'जिजीविषा' नामक उपनाम से लिखना प्रारम्भ किया | कई बार महाश्वेता देवी से उनकी मुलाकात हुई पर पहली मुलाकात ने उनके जीवन में परिवर्तन ला दिया

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