अखबारों के कार्टूनों के देखने का मुझे बचपन से ही शौक रहा है । आज सुबह का Times of India के सूरत संस्करण के कुछ पृष्ठों को पलट रहा था कि मेरे नजर एक खास कार्टून पर पड़ी । कार्टून में एक कार्यालय के बाबुओं को टेढ़ा होकर चलते हुए दिखाय गया है । इन टेढ़े बाबुओं के इस टेढ़ेपन के लिए अंडर द टेबल की आदत को जिम्मेदार बताया गया है । मुझे इस कार्टून को देखकर हंसी आ गई । एक नजर में तो यह कार्टून आजकल टी वी पर चल रहे किसी यात्रा कंपनी के विज्ञापन का नकल लगा । उस विज्ञापन में भी दिखाया गया है कि किसी ऑफिस के लोग घुटनों पर आधा झुक कर चल रहे हैं । इसका कारण उनकी प्रकृति को बताया गया है । मानुषी की ये प्रकृति सरकारी कार्यालयों के बाबुओं पर कुछ ज्यादा ही हावी दिखाई देती है । इसका परिणाम यह देखने में आता है कि सरकारी बाबू की टेबल पर पड़ी हुई फाइल में आवेदक चाहे मरणासन्न स्थिति में रहकर आपात मदद की आकांक्षा लिए हुए आवेदन भले ही दिया हो पर साहब उसे अपने हिसाब से ही देखेंगे , अपने मर्जी से ही पास करेंगे । और फिर बाबू तो बस बाबू ही हैं , उन्हे कौन प्रश्न कर सकता है । हालांकी भारत सरकार ने आमजन के RTI का अधिकार दिया है जिससे आमजन अपनी समस्या के संबंध में प्रश्न कर सकता है लेकिन बाबू तो बाबू ही ठहरे । ऐसा गोल मोल जवाब देंगे कि आवडक भी झख मार्कर यह भूल जाएगा कि उसने पूछा क्या था । आजकल एक नया फार्मूला और चल पड़ा है जिसमें बाबूजी यह लिखकर अपने अधिकार का इतिश्री कर लेते हैं कि मांगी गई जानकारी इस विभाग में उपलब्ध नही है । अब कर लो जो करना है । नियमतः आप यह नाही पूछ सकते कि जानकारी नाही है तो क्यों नही है । किसी प्रदेश के लोकपाल बहुत जागरूक होकर छापे तो मार रहे है पर यह तो सागर के बूंद के बराबर है ।
धत्त तेरे की मैं ये क्या लेकर बैठ गया । बाबुओं की महिमा का गुणगान कतरे हुए किसी ने देख लिया तो फिर ...... चलिये फिर मिलते हैं ।
धत्त तेरे की मैं ये क्या लेकर बैठ गया । बाबुओं की महिमा का गुणगान कतरे हुए किसी ने देख लिया तो फिर ...... चलिये फिर मिलते हैं ।
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