मनुष्य के शरीर में सबसे कोमल एवं चंचल अंग
यदि कोई है तो वो नैन ही हैं.नैन यानि कि आंखें.साहित्य की विधा यदि देखें तो यह
मिलता है कि साहित्यकारों ने इसे इतना महिमामींडत किया है तथा इसपर इतनी कविताएं
एवं गीत लिख डाला है कि जितना भी पढें क़म
ही लगता है.किसी ने अपने गीतों में नारी को नैनों के माध्यम से परिभाषित किया है
जैस कि काले -कजरारे नैनों वाली, किसी रचनाकार ने इसे जादू भरी , तो किसी ने नैनों को सपना और इन सपनोंमेंभी सपना बसा देख डाला तो किसी ने
संबोधन का माध्यम बनाकर पता नहीं क्या क्या कह डाला.प्रेम की विरहनी किसी प्रख्यात
लेखक की नाइका जाह्नवी ने विरह वेदना से व्याकुल होकर कागा को निमंत्रण दे डाला
यहा कहते हुए कि कागा चुन चुन कर खाइयो पर अपने दो नैनो को खाने से इसलिए मना कर
देती है कि शायद उसके प्रेमी वापस आएं , उस समय इन बचे हुए
नैनों से अपने प्रियताम का दीदार तो कर पाएगी. एक शायर ने तो अतिशयोक्ति की हद कर
डाली जब उसने इसे झील मानकर नाइका के झील सी आंखों में डूब मरने की इच्छा व्यक्त
कर डाली यह कहते हुए कि झील सी आंखों में तेरे डूब मरना चाहता हूं.अब आप जरा सोचिए
कि पांच फुट के शरीर में आंखों का स्थान होता ही कितना है . अब वह झील कैसे हो
सकता है तथा उसमें किसी का डब मरना कैसे हो सकता है.पर साहित्य की विधा होती ही
कुछ ऐसी है कि इसमें सबकुछ संभव है ,
परंतु विज्ञान इन सब तर्कों को एक सिरे से नकार देता है.
विज्ञान की विधा को माना जाए तो हमारी आंखे सिर की अस्थि में बने दो
कोटरों के बीच स्थित है जिनके बीच एक सामंजस्य रहता है.इस सामंजस्य के कारण दो आंख
होने के बावजूद किसी वस्तु की छवि हमारे मस्तिष्क पटल पर दो न होकर सिर्फ मूर्त
रूप में वास्तविक संख्या के आधार पर बनती है , यानि कि यदि
एक तो एक या फिर गिनती में जितने उतने ही बनते हैं.कभी कभी ऐसा हो जाता है कि हमें
कोई एक वस्तु दो-दो दिखने लगे.यदि ऐसा हो जाए तो यह चमत्कार नहीं वरना किसी खास
रोग का लक्षण समझा जाना चाहिए. हो सकता है कि यह स्थिति दिमाग में किसी अनजाने
टयूमर अथवा नेत्र के ही किसी तन्तु में किसी विकार के आ जाने के कारण हो रहा हो.यह
स्थिति उन अवस्थाओं में भी आ सकती है जब रक्तचाप (Blood Pressure) असामान्य
रूप से बढा हो.ऐसी स्थित में यथा शीघ्र चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए . यदि कोई
असामन्य रोग नहीं है तो कुछ सामान्य योग करके इस स्थिति से निजात पााया जा सकता
है.मेरे एक मित्र के पिताजी को साथ एकबार ऐसी समस्या हो गई थी . उन्हें हर वस्तु
दो दो नजर आती थी.इसका दुस्परिणाम यह होने
लगा कि कुर्सी दो दिखती , यदि बैठना हो तो वो समझ नहीं पाते
थे कि कौन सी कुर्सी वास्तविक है , इस स्थिति में दूसरी
कुर्सी का चुनाव हो जाता और नतीजा बेचारे धडाम से जमीन पर गिर पडते थे.देखने वालों के लिए
यह हास्यास्पद लगता पर बेचारे परेशान बहुत थे.प्रारंभिक जांच से कुछ विशेष बिमारी
का पता न लग सका.समस्या धीरे धीरे महीने भर से अधिक दिनों तक चली.बाद में कुछ
सामान्य आसनों के सहारे हफ्ता भर से भी कम समय में उनका यह कष्ट दूर हो गया.
हमारे आंखो के बीच में गोल सी काली/भूरी संरचना आंखो की पुतली(cornea´ होती है जिससे
होकर किसी वस्तु की छाया प्रकाश विन्दु के रूप में दृष्टिपटल(retina)पर पडता है.इस प्रकार हमें
किसी वस्तु के प्रतिविंब का अहसास होता है.हमारी आंखें कुछ हद तक अंडाकार रूप में
होती हैं जिसके बीच में तरल पदार्थ भरा रहता है जिसे (vitreous fluid´ के
नाम स जाना जाता है.दृष्टि पटल पर पडने वाले हर प्रतिविम्ब का प्रकाश इस तरल
पदार्थ से होकर गुजरता है.आंखो के बाहरी सतह को कुछ मांशपेशियां हमेशा जकाड क़र
रखती हैं जिसके कारण आंख अपने वस्तविक आकार में बनी रहती है.किसी कारण से इन
मांसपेशियों के तनाव के स्तर में बाधा अथवा खोट आ जाने के कारण हमें दृष्टि दोष
यानि की देखने में परेशानी हाने लगती है.आकार के आधार पर या तो यह दूर की नजर की
कामजोरी होती है या फिर नजदीक की जिसमें अक्षर अथवा वस्तु हमें धुंधली दिखाई देती
है.इन स्थितियों के निदान के लिए चश्मे के प्रयोग की सलाह दी जाती है.आजकल विज्ञान
की तरक्की के फलस्वरूप लेजर द्वारा शल्यकृया कर इसका निदान किया जा रहा है.
जैसा कि मेंने पहले कुछ अनुच्छेदोंमें जिक्र किया है कि आंखो को झील के
समान माना गया है. यदि हम गौर से देखें तो इसमें थोडी सी सच्चाई भी नजर आती
है.जैसे झील में पानी होता है उसी प्रकार से आंखों में भी पानी होता है.समय समय पर
संवेदनाओं के वेग अथवा किसी प्रकार के आघात से यह जल आंसू बनकर धारा प्रवाह निकल
पडता है.यह नमकीन जल आंख की बाहरी सतह को हमेशा गीलापन प्रदान करता रहता है . यह
नमी आंखों को स्वच्छ बनाए रखता है तथा रोगों को दूर रखता है .अधिक मात्रा में
निकलने वाले इस जल को नेत्रनली नाक के माध्यम से बाहर निकाल देती है.यह नेत्र नली
आंख की बाहरी सतह से लेकर नाक के अंदर तक जाती है . अक्सर देखा गया है कि जब आंसू
अधिक निकले हैं तो नाक बहने लगती है . उस समय आंखों से अधिक मात्रा में निकलने
वाला जल नेत्रनली के माध्यम से नाक से होकर निकलने लगता है.आंख से अत्यधिक जल का स्राव यह दर्शाता है कि या तो नेत्रनली
में किसी प्रकार का ब्यवधान है या फिर कोई संक्रमण.छोटे बच्चों में बहुदा यह कष्ट
रहता है.बच्चों को हम अक्सर सुन्दर दिखें इसके लिए खूब काजल लगाते है.पर अनजाने
में इस तथ्य से अनजान होते हैं कि बच्चे की आंख सुंदर दिखने की बजाय यह काजल उसके
नेत्र नली को बंद कर देगा जिसके कारण आंख से पानी आना जैसी समस्या शुरू हो
जाएगी.यदि यह समस्या अधिक दिनों तक चली तो फिर इसके घातक परिणाम हो सकते हैं.कई
बार आंख के अंदर का सफेद हिस्सा लाल हो जाता है.डाक्टरी जुबान में इसे
कंजंटीवाइटिस कग जाता है जिसमें लाली के साथ आंख से पानी आना भी जारी रहता है.इस
स्थिति में तुरंत किसी चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए क्योंकि यह एक फैलने वाला रोग
है जो कि संपर्क द्वारा फैलता है.ऐसे में बार बार आंख को हाथ नही लगाना श्रेयकर
होता है.
कुछ स्थितियों में या तो आंखों में जलन की शिकायत रहती है या फिर आंखों से
पानी आता रहता है.यह समान्यतया बालों में रूसी(Dandruf´ के कारण होता
है.इसमें बालों से निकलकर रुसी आंख की पलक से होती हुई आंखों में गिरती है जिसके
कारण आंखों में जलन एवं पानी आने की
समस्या होती है.ऐसे में एक अच्छे एन्टी डैंड्रफ शैंपू का बराबर इस्तेमाल आपकी
समस्या का निवारण कर देगा. खुछ हद तक इस तरह की समस्या विटामिन ए की कमी के कारण
होती है.
बचपन से लेकर बडा होने तक आंखों की कई समस्याओं का सामना करना पडता है.कई
ऐसे रोग होते हैं जिनका सही समय पर यदि ईलाज करवा लिया जाए तो बाद में समस्या बडा
होने से रोका जा सकता है.मेरे एक मित्र हैं जिनको बचपन में स्कूल में बोर्ड पर
लिखा हुआ दिखाई नहीं देता था.पास में बैठे सहपाठी की कापी से चीजें कॉपी करना पडता
था.शरीर से पूर्णतया स्वस्थ बालक था अतः इस समस्या के बारे में किसी ने गम्भीरता
से नहीं लिया.18 साल का होने पर जब स्थिति गंभीर होने लगी तो
डॉक्टर को दिखाया गया.जांच के बाद पता लगा कि इन्हें लेजी आई(Amblyopia´ नामक
रोग था.इसमें आंख के पर्दे (Retina´ का
सही विकास नहीं हो पाता है.100 में से 1 बच्चे में
सामान्यतया यह रोग पाया जाता है. यदि बचपन में ही इसका इलाज करवाया जाए तो रोग ठीक
हो सकता है पर बढती उम्र के साथ इसका निदान असंभव सा है.एक और समस्या है जिसे
भैंगापन(Squint´ कहते
है.यह भी बचपन में ही दिखने लगता है.यदि समय पर इसका इलाज नहीं करवाया गया तो यह
भी आगे चलकर लेजी आई में बदल सकता है.बचपन में होने वाला मोतियाबिन्द भी आगे चलकर
इस समस्या का कारक हो सकता है.समय पर जांच करवाकर इन समस्याओं से निपटा जा सकता
है.
कई बार ऐसा होता है कि हमें आंखों के आगे काला सा धब्बा दिखाई देता है या
फिर मक्खी उडती हुई महसूस होती है.यह लक्षण Viterous Opacity नामक बिमारी के कारण होता है.
कभी कभी बल्ब के चारों तरफ इन्द्रधनुष स दिखाई देता है. यह अवस्था लगातार
रहे तो होशियार हो जाइए.यह ग्लूकोमा का लक्षण है.इस रोग में आंखों के अम्दर का
दबाव सामान्य से अधिक या कम हो जाता है.इससे धीरे धीरे आंखों की दृष्टि चली जाती
है.सामान्यतया मधुमेह एवं उच्च रक्त चाप वाले रोगियों मे इस बिमारी के होने के
आसार अधिक होते हैं.
आंखों में यदि बिजली चमकने जैसा आभास हो तो हो सकता है कि यह रेटीना(आंख
के पर्दे) की गंभीर बिमारी हो सकती है.जिस ब्यक्ति को नजदीक की वस्तुएं साफ ना दिखती हों तथा उम्र
बढने के साथ ही यदि ब्यक्ति को नजदीक की वस्तुएं साफ दिखाई देने लगे तथा धूप में
निकलने में परेशानी हो , शाम के समय साफ साफ दिखाई देने लगे
तो समझिए कि मोतियाबिन्द हो रहा है.
नेत्र दान के बारे में तो आपने अवश्य सुना होगा.आज के समय में एक व्यक्ति
के एक आंख की पुतली(Cornea´ से छः नेत्रहीनों को दृष्टि मिल सकती है. इस
अनुपाात में यदि सही ढंग से नेत्रदान किया जाए तो हमारे भारत में ही न जाने कितने
नेत्रहीनों को नई रोशनी मिल सकती है.इस दिशा में एक पहल एवं एक शुरूआत की आवश्यकता
है.हम और आप मृत्यु के बाद भी किसी की
आंखों से नया जीवन पा कर दुनियां को देख सकते हैं.
है ना बडी ग़ूढ एवं रहस्यमयी ये
आंखे. तभी तो इन नैनौं पे सारा जहां निसार है.इनपर लोगों ने क्या क्या लिख डाला
है.बस अब जरूरत है इनका ख्याल रखना , समुचित देखभाल ,
कुछ सामान्य से आसन एवं योग से इन्हें और भी सुन्दर एवं आकर्षक बनाए रखा जा सकता है.
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