भारत की
वीरांगनाओं में पश्चिम बंगाल की वीरांगना रानी रासमणि का एक महत्वपूर्ण स्थान है | उन दिनों जबकि
भारतीय समाज गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था | समाज के हर क्षेत्र में नारी उपेक्षित ही रहती थी, उन दिनों रानी
रासमणि ने समाज सुधार एवं अंग्रेजों से लोहा लेने में किंचित मात्र भी संकोच नहीं
किया | मध्य 19 वीं शताब्दी में
पुरुष प्रधान समाज में उनका एक विशिष्ट दबदबा था | दिनांक 28 सितम्बर 1793 को पश्चिम बंगाल के वर्तमान समय के उत्तर 24 परगना जिला के
कोना नामक ग्राम में उनका जन्म हुआ था | उनके पिता एक
प्रतिष्ठित जमींदार थे | 11 वर्ष की उम्र में उनका विवाह कलकत्ता के जान बाजार
क्षेत्र के प्रतिष्ठित जमींदार बाबू राजाचंद्र दास से हुआ | पिता और पति के
घर जमींदारी होने के कारण बचपन से ही उनके अंदर नेतृत्व क्षमता विद्द्मान थी | दयालु स्वभाव, धर्म में रूचि
एवं भक्ति में आस्था उनके अंदर बचपन से भरा हुआ था | अल्पायु में ही वैधव्य का दुःख उनके ऊपर आन पड़ा | पति के देहांत
के बाद पूरे जमींदारी का भार इन्होने अपने कंधे पर ले लिया | बंगाल में विधवाओं की स्थिति उन दिनों
काफी खराब थी तथापि अपने दूरदर्शिता, धार्मिक आस्था एवं लगन से समस्त नकारात्मक शक्तियों को
पराजित करते हुए बड़े ही कुशलता पूर्वक उन्होंने जमींदारी का भार सँभालते हुए
पुरुषों का नेतृत्व किया | पद्मिनि, कुमारी, करुणामयी और जगदम्बा नामक उनकी कुल चार बेटियां थीं, जिनमें से विवाह
के दो वर्ष के बाद करुणामयी की मृत्यु हो गई | इन्हे कोई पुत्र नहीं था |
कहा जाता है कि
माँ काली में विशेष आस्था के कारण स्वप्न में उन्हें दक्षिणेश्वर में माँ काली के
मंदिर निर्माण की प्रेरणा मिली | इस प्रेरणा से सं 1855 में इस मंदिर का निर्माण हुआ | यह भी कहा जाता
है कि गदाधर नामक एक पुजारी को दक्षिणेश्वर के इस काली मंदिर में पूजा अर्चना करने
के लिए रानी रासमणि द्वारा नियुक्त किया गया था | कालांतर में चलकर यही गदाधर स्वामी रामकृष्ण परमहंस
कहलाए | ऐसा नहीं कि
उन्होंने मात्र मंदिरों का ही निर्माण करवाया हो | समाज के अन्य के क्षेत्र में भी उन्होंने विकास कार्य
करवाया | उन्होंने तीर्थ
यात्रियों की सुविधा के लिए सुवर्णलेखा नदी से पारी तक सड़क निर्माण करवाया, गंगा किनारे के
घाट बनवाए जिनमें कलकत्ता का बाबूघाट प्रमुख है, जिसे उन्होंने अपने पति की याद में बनवाया था | इम्पीरियल लाइब्रेरी जिसे वर्तमान समय में नेशनल
लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है, हिन्दू कॉलेज जिसे अब प्रेसिडेंसी कॉलेज के नाम से
जाना जाता है, उनके निर्माण के
लिए भी उन्होंने काफी रकम का सहयोग दिया |
ऐसे ही एक बार
अंग्रेजी हुकूमत ने मछुवारों द्वारा गंगा में मछली पकड़ने पर कर लगवा दिया | कर न देने पर
मछली पकड़ने की मनाही कर दी गई | इससे मछुवारों को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा
था | मछुवारों की
गुहार पर उन्होंने गंगा में कई स्थान पर लोहे की जंजीर डलवा दिया | इन जंजीरों के
कारण आवागमन करने वाले पानी के जहाजों को काफी नुकसान होने लगा | अंत में हारकर ब्रिटिश सरकार को अपना
फरमान वापस लेना पड़ा और मछुवारों को मछली पकड़ने की आजादी प्राप्त हो गई | इसी प्रकार से
दुर्गा पूजा के समय पूजा के जुलूस पर यह कहते हुए पाबंदी लगा दी गई कि इससे शांति
भंग होती है और जनता को असुविधा होती है | ब्रिटिश राज के इस हुक्म का उन्होंने कड़ा विरोध किया
और हर पाबन्दी के बावजूद पूरे धूम-धाम से
दुर्गोत्सव मनाया गया | इसमें जनता ने भी रानी का साथ दिया | जनता के अकड़े विरोध के कारण ब्रिटिश राज
ने अपना यह फरमान भी वापस लिया | जनता के हित के लिए अंग्रेजी हुकूमत से उनका हमेशा
विरोध रहा |
सुंदरवन के कुछ
क्षेत्र के मालिक प्रिंस द्वारकानाथ टैगोर ने ब्रिटेन जाने के लिए अपनी कुछ जमीन
को रानी रासमणि के पास गिरवी रखा | (यह क्षेत्र वर्तमान दक्षिण 24 परगना जिला के
संतोषपुर और उसके आसपास का क्षेत्र है) | उन दिनों इस क्षेत्र में आबादी नहीं के बराबर थी | कुछ असामाजिक
तत्वों का यहाँ बसेरा हुआ करता था | इस क्षेत्र में मछुवारों को मत्स्यपालन के लिए
प्रोत्साहित किया और उनका भरपूर सहयोग किया | धीरे-धीरे यहाँ मत्स्यपालन के कई छोटे-छोटे केंद्र
विकसित हो गए | इस क्षेत्र में
बसे हुए असामाजिक तत्व भी समाज की मुख्य धारा में शामिल होकर मत्स्य पालन के
कारोबार में लग गए | उनके इस प्रयास ने समाज सुधार की दिशा में एक
क्रांतिकारी परिवर्तन किया |
सन 1855 में उनका देहावसान हो गया | कलकत्ता के कई
हिस्से में उनके नाम की सड़कें और भवन आदि आज भी उनकी याद दिलाती हैं | उनके सम्मान में
भारतीय डाक विभाग द्वारा डाक टिकट भी जारी किया गया | समय के साथ उनका पुराना निवास आज जर्जर हालत में पहुँच
चुका है | हालाँकि कलकत्ता
नगर निगम ने इस हवेली की देखरेख का जिम्मा उठाया है पर अभीतक जीर्णोद्धार की
प्रक्रिया प्रारम्भ नही हो पाई है |
उनके द्वारा दिए
गए समाज सुधार के कार्य, अंग्रेजों से भारतीयों के हक़ के लड़ाई और स्वाभाव के
कारण वो सदैव पूजनीय रहेंगी |
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